________________
सम्भव है आत्मा का साक्षात्कार
'आत्म-साक्षात्कार प्रेक्षाध्यान के द्वारा'-यह प्रेक्षा गीत का ध्रुवपद है। आत्मा का साक्षात्कार बहुत कठिन लगता है, पर असंभव नहीं है। प्रश्न हो सकता है-आत्मा अमूर्त है। इन्द्रियां एवं मन मूर्त को जानते हैं, साक्षात्कार कैसे संभव होगा? हमारे पास जानने के जो साधन हैं, वे न मूर्त को जानने वाले हैं, न अमूर्त को जानने वाले हैं। इन चर्म चक्षुओं से मूर्त परमाणु का साक्षात्कार नहीं हो सकता। सूक्ष्म स्कंध का भी नहीं हो सकता। अनंत प्रदेशी स्कन्ध हैं, अनन्त परमाणु इकट्ठे हुए हैं किन्तु परिणति सूक्ष्म है। हम इन आंखों से उन्हें नहीं देख पाते। हम इन्द्रियों और मन से बहुत कम चीजों को जानते हैं। यह कहा जा सकता है-विश्व का नब्बे प्रतिशत भाग हमारे लिए अदृश्य और अगम्य है। दस प्रतिशत भाग मुश्किल से गम्य बनता है। इस स्थिति में जो अमूर्त है, सूक्ष्म है, क्रियातीत, मनोतीत और बुद्धि से परे है, उसका साक्षात्कार कैसे संभव है? इस विषय में अनेक आचार्यों ने चिन्तन किया और एक रास्ता खोजा। उन्होंने कहा-आत्मा का साक्षात्कार न हो तो ध्यान करने वाला निराश हो जाएगा। चार तत्त्व
ध्यान करने वाले व्यक्ति को चार तत्त्वों पर पहले निर्णय करना होता है१. लक्ष्य, २. शक्यता, ३. दृष्ट फल, ४. अदृष्ट फल।
ध्यान का लक्ष्य क्या है? लक्ष्य बहुत बड़ा है तो फिर अपनी शक्ति को देखें-मेरे पास कितने साधन हैं? लक्ष्य के अनुरूप शक्यता का बोध-यह दूसरा तत्त्व है। तीसरा तत्त्व है-दष्ट फल। ध्यान का एक फल ऐसा होता है जो तत्काल सामने आ जाता है। कायोत्सर्ग का प्रयोग किया, तनाव कम हो गया। श्वास प्रेक्षा का प्रयोग किया, भारीपन कम हो गया। यह दृष्ट फल है। चौथा तत्त्व है अदृष्ट फल । व्यक्ति ध्यान करता चला गया पर फल का अनुभव नहीं हुआ, आत्मा का दर्शन नहीं हुआ, पता नहीं कब होगा? यह अदृष्ट फल है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org