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ध्येय का साक्षात्कार
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हम कहते हैं - अनन्त आनन्द भीतर है। शास्त्रों में पढ़ा है कि अपने भीतर अनन्त आनन्द है। पढ़ा है इसलिए कह देते हैं । यह उधार का व्यापार है, इसमें अपनी पूंजी कुछ नहीं है । आपने कभी आनन्द का अनुभव किया? जब तक पर्याय में गहरे नहीं जाएंगे तब तक पता नहीं चलेगा कि अपने भीतर भी आनन्द है । हम कहते हैं, हमारे भीतर बहुत ज्ञान है। जब तक दर्शनकेन्द्र पर गहरा ध्यान नहीं करेंगे, अन्तर्दृष्टि का जागरण नहीं होगा तब तक हम सुनी-सुनाई, पढ़ी - पढ़ाई बात ही करेंगे। हमारे भीतर अनंत ज्ञान है । किन्तु जब उसका विकास होता है, सूक्ष्म पर्यायों को जानने की क्षमता जाती है तब यह साक्षात बोध होता है कि अपने भीतर कितना ज्ञान है। बिना पढ़े-लिखे ज्ञान का स्रोत फूट पड़ता है।
समय प्रौढ़ता का
ध्यान के लिए हमने एक आलम्बन लिया पर वह हमारे साथ ज्यादा रह नहीं पाएगा। उसके साथ दोस्ती नहीं होती । यदि दोस्ती होती तो लम्बे समय तक टिक जाता। वह आया और चला गया। चित्त की एक अवस्था है यातायात । ध्यान किया, एक मिनट या आधा मिनट ध्यान रुका और फिर चला गया। फिर आया, फिर चला गया। जब तक यह यातायात की स्थिति रहती है तब तक ध्यान का बचपन रहता है । वह यातायात की स्थिति न रहे, ध्यान स्थिर बन जाए, पांच मिनट तक कोई दूसरा विचार - विकल्प न आए, दस-बीस मिनट तक न आए, आधा घण्टा तक न आए तो समझना चाहिए कि अब ध्यान युवा बन रहा है। प्रौढ़ बनने में अभी देरी है । प्रौढ़ बनने का सामान्य समय माना जाता है-चार घड़ी तक एक आलम्बन पर टिकना । प्राचीन भाषा में कहें तो चौबीस मिनट की एक घड़ी होती है। चार घड़ी यानि डेढ़ घण्टा तक एक आलम्बन पर ध्यान टिक जाए तो मान लेना चाहिए कि ध्यान प्रौढ़ बन गया, अनुभव बहुत परिपक्व हो गया। वहां तक पहुंचना है किन्तु वहां तक वे ही पहुंच पाएंगे, जिनमें सत्य को जानने की रुचि पैदा हो गई है, जिज्ञासा जाग गई है । जिनके मात्र इतना प्रयोजन है कि बस थोड़ी शांति मिले, थोड़ा सा आनंद का अनुभव हो, मानसिक तनाव न रहे, शांति के साथ जी सकें और बीमारियां न सताए, उनका ध्यान सदा शिशु ही रहेगा, आगे नहीं बढ़ पाएगा। उस ध्यान की आयु लम्बी नहीं हो सकती।
ध्यान का प्रयोजन
ध्यान का मूल प्रयोजन है - सत्य की खोज । प्राचीन काल में सत्य की खोज का साधन था-ध्यान। आज सत्य की खोज का साधन है उपकरण । सूक्ष्म को आंखों से नहीं देखा जा सकता किन्तु माइक्रोस्कोप आदि सूक्ष्मवीक्षण यंत्रों के द्वारा देखा जा सकता है । दूर की वस्तुओं को जिन आंखों से नहीं देखा जा सकता, उन वस्तुओं को यंत्रों से देखा
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