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________________ ४८ तब होता है ध्यान का जन्म सब आश्चर्य में डूब गए। चोर ने संन्यासी के पैर पकड़ लिए। उसने गद्गद् स्वर में कहा-'एक तुम ही हो, जो भला आदमी कहते हो, दूसरा कोई मुझे भला कहने वाला नहीं है।' क्या चोर भला आदमी है? सबकी दृष्टि में बुरा और संन्यासी की दृष्टि में भला। अपना-अपना दृष्टिकोण है। कोई भी आदमी नितांत बुरा नहीं होता और कोई भी आदमी नितांत भला नहीं होता। जिसको हम भला मानते हैं, उसके मन में न जाने कितने चोर छिपे बैठे हैं और जिसको चोर मानते हैं, उसके मन में न जाने कितने साहूकार छिपे बैठे हैं। प्रश्न है-हमारी दृष्टि कहां तक पहुंचती है? अगर हमारी दृष्टि सूक्ष्म पर्याय तक पहुंचती है तो चोर भी हमारे सामने भला हो जाता है और दृष्टि केवल स्थूलस्पर्शी रहती है तो साहूकार भी चोर बन जाता है। जरूरी है सूक्ष्म दृष्टि का विकास । सूक्ष्म पर्यायों को जानने के लिए सूक्ष्म दृष्टि का विकास जरूरी है और वह होता है विचारानुगत ध्यान या पर्याय ध्यान से। जब हम पर्याय का ध्यान करेंगे तब वह विकसित होगा। यदि व्यक्ति एक दिन के बच्चे से लेकर एक वर्ष का बच्चा हो जाए तब तक प्रतिदिन उसके पर्यायों का सूक्ष्मता से अध्ययन करे तो अच्छा ध्यानी बन जाए। उसे फिर प्रेक्षाध्यान के शिविर में भाग लेने की जरूरत नहीं है, पदार्थ का आलम्बन लेने की आवश्यकता नहीं है। प्रतिदिन कैसा पर्याय बदल रहा है? प्रतिदिन नहीं, प्रति मिनट कैसा पर्याय बदल रहा है? अगर इतनी सूक्ष्म दृष्टि बन जाए, हम एक दिन के चौबीस घण्टों में होने वाले पर्यायों का अध्ययन कर सकें तो इतने महान ध्यानी हो जाएं कि ध्यान के लिए कहीं जाने की आवश्यकता ही नहीं रहे। पर्याय ध्यान बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। लोग आनन्दकेन्द्र पर ध्यान करते हैं और कहते हैं-आज ध्यान में बड़ा आनन्द आया। एक ज्ञान को विकसित करने वाला ध्यान है, जिसके द्वारा सचाइयां प्रकट हो जाती हैं। एक वह ध्यान है, जो आनन्द को प्रकट करता है। दिल्ली में प्रेक्षाध्यान का शिविर था। अनेक विदेशी लोग भाग ले रहे थे। उनमें एक थे हवाई युनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. ग्लेन. डी. पेज । वे पहले योद्धा थे, सेना में थे। उनको हिंसा से ग्लानि हो गई. अहिंसा में गहन आस्था हो गई। युनिवर्सिटी में प्रोफेसर बने । उनका विषय था पोलिटिकल साइंस का। उन्होंने उसके साथ अहिंसा को जोड़ दिया। रात्रि का समय। उन्हें सारे चैतन्य केन्द्रों का एक श्रृंखला में चक्रात्मक प्रयोग कराया गया। प्रयोग के बाद आए, बोले--'आज मुझे जिस आनन्द और जिस शान्ति का अनुभव हुआ है, हम अमेरिकन लोग सपने में भी नहीं सोच सकते कि अपने भीतर इतना आनन्द और इतनी शान्ति है।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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