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________________ ध्येय का साक्षात्कार ४७ प्रकार का बन जाता है। एक आदमी के देखने की शक्ति कमजोर हो गई। वह दूर से भी नहीं देख सकता और निकट से भी नहीं देख सकता। सामने कोई आदमी आया। हो सकता है वह उसे भींत मान ले और भींत को आदमी मान ले। दृष्टि ठीक हो गई अथवा चश्मा लगा लिया। इस स्थिति में उसके लिए आदमी आदमी बन जाता है, भीत भीत बन जाती है। उसे सब कुछ साफ दिखने लग जाता है। यह हमारी बहुत स्थूल दृष्टि है। हम स्थूल दृष्टि, स्थूल चिन्तन और स्थूल विचारों के आधार पर निर्णय करें तो वह सही नहीं होगा। जब सूक्ष्म दृष्टि का विकास होता है, हमारे सारे निर्णय बदल जाते हैं, सारे अवरोध हट जाते हैं। अपना अपना दृष्टिकोण एक चोर भूल से एक आश्रम में चला गया। कुटिया में एक संन्यासी बैठा था। मंन्यासी जाग रहा था। चोर ने सोचा-गलत स्थान पर आ गया, मैंने समझा था कुछ और, आ गया कहीं और । बहुत बार भ्रांति हो जाती है, समझता है-बड़े सेठ का घर है और निकल जाता है गरीब का घर । समझता है गरीब का घर और निकल जाता है सेठ का घर। ऐसी भ्रांतियां होती हैं। चोर ने संन्यासी को प्रणाम किया। संन्यासी ने पूछा-भाई ! तुम कौन हो? चोर ने सोचा-यहां क्यों झूठ बोलूं? उसने कहा-महाराज ! मैं चोर हूं, चोरी करने आया हूं। संन्यासी बोला-तुम गलत स्थान पर आ गए। यहां तुम्हें क्या मिलेगा? पर आ गए हो तो निराश नहीं लौटने दूंगा। संन्यासी खड़ा हुआ। उसने देखा-एक कंबल टंगा हुआ है। उसने कम्बल उतारा और कहा-ये ले जाओ, सर्दी का मौसम है। काफी दूर जाना है। ठिठुरते जाओगे। यह कंबल साथ में ले जाओ, तुम्हारे काम आयेगा। चोर कंबल लेकर चला गया। संयोग ऐसा मिला-पुलिस ने चोर को पकड़ लिया। चोरी का जितना सामान था, सब बरामद कर लिया। घोषणा हो गई जिसका सामान हों, वे आकर ले जाएं। संन्यासी को पता चला, संन्यासी भी गया। सबने अपना-अपना सामान ले लिया। संन्यासी ने कहा-'यह कंबल मेरी है।' 'क्या आपकी है।' 'पहले थी पर अब मेरी नहीं है।' 'इस चोर ने चुरा ली?' 'यह चोर नहीं है। बड़ा भला आदमी है, नेक है। इसने चोरी नहीं की. यह कंबल मैं ने दी है। यह आदमी मेरी कुटिया में आकर खाली जा रहा था। मैंने कहा- 'भाई ! खाली क्यों जाते हो, कम से कम इतना तो ले जाओ, तुम्हारे काम आएगा। मैं ने यह दान दिया है, इसने चोरी नहीं की है, इसलिए मैं वापिस ले नहीं सकता।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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