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________________ ध्येय का साक्षात्कार हमारा ज्ञान अनेक आकारों में बंटा हुआ है। ज्ञान का एक प्रकार है-स्मृतिज्ञान। एक व्यक्ति ने किसी वस्तु को देखा है, किसी नगर को देखा है, घर को देखा है और आज उन सबसे दूर चला गया है। वे वस्तुएं उसके सामने नहीं हैं। उसे उनकी स्मृति होती है। स्मृति में पूरा चित्र सामने आ जाता है। किसी आदमी को देखा, स्मृति होते ही पता चल जाएगा-रंग कैसा है? कितना लम्बा और कितना चौड़ा है? कैसे बोलता है? कैसे देखता है? उसके सामने न होने पर भी पूरा चित्र सामने आ जाता है। अमुक घर का दरवाजा कहां है, कहां प्रवेश-द्वार और निर्गमन-द्वार है? कहां भोजन का स्थान है? ये सब सामने आ जाते हैं। स्मृति-चित्र बिम्ब का प्रतिबिम्ब है। दूसरा ज्ञान है साक्षात्कार का ज्ञान । वह ज्ञान, जिसमें स्मृति नहीं है, साक्षात्कार है। स्मृति और चिंतन-ये दोनों उससे पीछे रह जाते हैं। ध्यान शिशु है या युवा - ध्यान की परिपक्वता के लिए ध्येय का साक्षात्कार होना जरूरी है। एक कसौटी होनी चाहिए-ध्यान परिपक्व हो गया है या शिशु अवस्था में चल रहा है? युवा बन गया है या शिशु है? यदि ध्यान युवा बन गया तो उसका स्वरूप दूसरा बन जायेगा। यदि ध्यान शिशु अवस्था में है तो उसका स्वरूप दूसरे प्रकार का होगा। प्रत्येक कार्य में चंचलता, विघ्न, बाधाएं आती हैं। बच्चा छोटा होता है, उस अवस्था में छोटी-मोटी बीमारियां भयंकर रूप ले लेती हैं। वह बड़ा हो जाता है तो स्थिति बदल जाती है। यह चंचलता की स्थिति ध्यान के शिशु काल में रहती है। जहां ध्यान का काल युवा बन गया, परिपक्व बन गया, वहां समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। द्रव्य ध्येय : भाव ध्येय ध्यान के दो प्रकार निरूपित हैं-द्रव्य ध्येय का ध्यान और भाव ध्येय का ध्यान । द्रव्यध्येयं बहिर्वस्तु, चेतनाचेतनात्मकम् । भावध्येयं पुनर्पायसन्निभध्यानपर्ययः ।। हमारे सामने कोई वस्तु है, ध्यान करना चाहा और उसे ध्येय बना लिया, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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