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ध्येय का चुनाव
'मैंने मेहनत नहीं की और फेल हो गया। अगर मैं मेहनत करता और फेल हो जाता तो मेरी सारी मेहनत बेकार चली जाती।'
कितना अन्तर है चिन्तन का। शायद इस प्रकार की मन:स्थिति का निर्माण हो जाता है कि इतनी मेहनत की और कुछ नहीं मिला। निराश हो जाते हैं। ध्यान का प्रयास शुरू किया, दस दिन का अभ्यास किया और आत्मानुभूति नहीं हुई, श्रम व्यर्थ चला गया। यह चिन्तन का सम्यक् कोण नहीं है। बहुत सारे लोग आते हैं, कहते हैं-महाराज! दो वर्ष से ध्यान कर रहे हैं, चार वर्ष से ध्यान कर रहे हैं। हमें अभी तक आत्मा का साक्षात्कार नहीं हुआ। उन्हें ऐसा लगता है कि चार वर्ष तो हमारे फालतू ही चले गए। ऐसा सोचने वाले मूल सचाई से हट जाते हैं। चार वर्ष नहीं, चार जन्म लग सकते हैं, उससे भी अधिक लग सकते हैं। लक्ष्य के बीच में आने वाली बाधाएं और विघ्न हैं, उनको जब तक आप निरस्त नहीं करेंगे तब तक ध्येय का दर्शन संभव नहीं होगा। उन बाधाओं को मिटाने में अनेक जन्म लग सकते हैं। बाधाओं को पार करें
हमें ध्यान के प्रयोगों को भी बांट देना चाहिए। एक प्रयोग वह है, जो मुख्यत: शरीर के लिए किया जा रहा है। ध्यान करने वाले व्यक्ति को आसन करना चाहिए, प्राणायाम करना चाहिए और इसीलिए करना चाहिए कि शरीर ध्यान करने में साथ दे सके। ध्यान का एक स्वरूप होगा स्वास्थ्यात्मक-व्याधि प्रतिकारात्मक । ध्यान करने वाले व्यक्ति के लिए शारीरिक स्वास्थ्य बहुत जरूरी है। अन्यथा वह आगे बढ़ नहीं सकेगा। दूसरा पहलू है मानसिक चिकित्सात्मक । वह ध्यान भी अपेक्षित है, जो मन की चिकित्सा करने में सहायक बने। कायोत्सर्ग चिकित्सात्मक प्रणाली की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्राचीनकाल में कायोत्सर्ग की जो पद्धति थी, वह दोष-विशुद्धि की पद्धति थी।
एक मुनि ने कोई कार्य किया, साथ में थोड़ा अतिक्रमण हो गया। वह गुरु के पास गया और बोला-भंते ! यह अतिक्रमण हुआ है। गुरु कहते-सर्त्ताइस श्वास का कायोत्सर्ग करो। एक मुनि कहता-स्वप्न आ गया। गुरु कहते-सौ श्वास का कायोत्सर्ग करो। आठ, सताइस, सौ, पांच सौ, हजार श्वासोच्छ्वास का प्रयोग करो। इस प्रकार के प्रायश्चित्त का विधान चलता रहा है, क्योंकि यह मन की समस्या को सुलझाने वाला प्रयोग है। जिस व्यक्ति को मानसिक उलझनों को मिटाना है, उसके लिए श्वासोच्छ्वास के साथ कायोत्सर्ग का प्रयोग करना जरूरी है।
आसन, प्राणायाम, कायोत्सर्ग, ध्यान-ये सारे प्रयोग बाधाओं को पार करने के लिए हैं। जैसे-जैसे बाधाएं दूर होंगी, मंजिल स्पष्ट दिखाई देने लग जाएगी। कार चलती है। गत्यवरोधक सामने आता है, गति मंद हो जाती है। रेल्वे का फाटक बंद हो तो
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