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तब होता है ध्यान का जन्म सिर में दर्द है, ध्यान नहीं हो सकता। शरीर में पीड़ा है, ध्यान करना संभव नहीं है।
शारीरिक स्वास्थ्य ध्यान में सहायक बनता है, कारक बनता है। हम आसन, प्राणायाम करेंगे, शरीर की निर्मलता बढ़ेगी, शरीर की क्षमता बढ़ेगी, ऊष्मा-ऊर्जा को सहन करने की क्षमता बढ़ेगी। इन सबका विकास होगा तो ध्यान सधेगा अन्यथा ध्यान की सिद्धि संभव नहीं होगी। दूसरा ध्येय है-मानसिक स्वास्थ्य। अवसाद आदि की जो समस्याएं हैं, उनसे मुक्ति पाए बिना आत्मानुभूति की बात कहीं रह जाती है। हम लोग भावना में बह जाते हैं। यदि यथार्थ की भूमिका पर आएं तो हमें काफी गहराई में जाना होगा। आत्मानुभूति या आत्मा का ध्यान कब हो सकता है? आत्मानुभूति का अर्थ क्या है? राग-द्वेष मुक्त क्षण की उपलब्धि है आत्मानुभूति। वह ज्ञान आत्मा का साक्षात्कार बन जाता है, जिस ज्ञान के साथ न राग है और न द्वेष। यह सूत्र बहुत सीधा है। इसका अर्थ भी सीधा है किन्तु इसकी यात्रा बहुत लम्बी है। ऐसे क्षणों को जीना सामान्य बात नहीं है। निर्भर है प्रयोग पर
हमारे आचार्यों ने आत्मा के स्वरूप का विशद वर्णन किया है। आत्मा शुद्ध होता है, शरीर मुक्त होता है उसमें अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त शक्ति, अनन्त आनन्द होते हैं, वह अमूर्त है, शरीर-प्रमाण है आदि-आदि । बहुत विस्तार के साथ आत्मा की चर्चा हुई है किन्तु उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण होना उस चर्चा पर निर्भर नहीं है। वह प्रयोग पर निर्भर है। यदि प्रयोग के द्वारा हमारी ऐसी भूमिका बन जाए, जिसमें शरीर भी साथ दे, मन और भावना भी साथ दे, कोई बाधा न आए, उस स्थिति में हम ध्यान करने बैठे और एक दूसरी स्थिति में चले जाएं तो ध्येय का साक्षात्कार संभव बन सकता है। उस भूमिका में गए बिना ऐसा होना संभव नहीं है। शायद इसीलिए बहुत सारे लोग ध्यान का प्रयत्न नहीं करते। वे सोचते हैं-जटिल मार्ग है, वहां तक पहुंचना भी मुश्किल है, वे इस दिशा में प्रस्थान ही नहीं करते। इस चर्चा का उद्देश्य किसी को निराश करना नहीं है, श्रम विमुख करना भी नहीं है, किन्तु बीच में आने वाली बाधाओं को पार करने के लिए क्या-क्या करना है? किन-किन उपायों का आलम्बन लेना है? उस ओर ध्यान आकर्षित करना है। अगर उस ओर ध्यान नहीं देंगे और सीधी आत्मा की बात करेंगे तो सफलता नहीं मिलेगी। व्यक्ति यही सोचेगा कि ध्यान को छोड़ देना अच्छा है।
___ 'एक विद्यार्थी अनुत्तीर्ण हो गया। पिता ने कहा- 'मैं तो जानता ही था कि तुम श्रम नहीं करते हो, अनुत्तीर्ण हो जाओगे।'
'पिताजी ! बहुत अच्छा हुआ?' 'अरे! क्या अच्छा हुआ?'
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