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________________ ३९ ध्येय का चुनाव समस्याएं हैं, उतने प्रयोग हैं। इस प्रकार ध्येय अनेक बन जाते हैं । एक है मुख्य ध्येय, दूसरे हैं प्रासंगिक और गौण ध्येय। मुख्य और गौण-दोनों के बिना कभी काम नहीं चलता। एक व्यक्ति ने बंबई से लाडनूं के लिए प्रस्थान किया। उसका मुख्य ध्येय है बंबई से लाडनूं पहुंचना किन्तु बीच में गौण ध्येय और भी हो सकते हैं। जयपुर में किसी मित्र से मुलाकात करना, वस्तुओं का क्रय करना-ये सारे गौण ध्येय हैं। ध्यान के संदर्भ में एक गौण ध्येय है शारीरिक स्वास्थ्य । ध्यान का एक पहलू है-चिकित्सात्मक । बहुत सारे लोग प्रेक्षाध्यान के शिविरों में केवल आध्यात्मिक या आत्मोपलब्धि की भावना से नहीं आते। इस भावना से भी आते हैं कि शरीर स्वस्थ बन जाए। इतना विवेक अवश्य जागना चाहिए-ध्यान आत्मशुद्धि अथवा आत्मा की उपलब्धि के लिए है। शारीरिक स्वास्थ्य उसका प्रासंगिक फल है। जो व्यक्ति ध्यान करेगा, उसके निर्जरा होगी और साथ-साथ शरीर भी स्वस्थ बनेगा, किन्तु शारीरिक स्वास्थ्य को मुख्य न बनाएं। मुख्य बनाएं निर्जरा को, संस्कार-शुद्धि को। इससे काम भी हो जाएगा और निर्मलता भी बढ़ेगी। ___ आचार्य भिक्षु ने कहा-व्यक्ति खेती करता है, बाजरी बोता है, गेहूं बोता है, चावल बोता है। वह खेती करता है अनाज के लिए, साथ में पलाल, तूड़ी और भूसा भी होता है। वह प्रासंगिक फल है। प्रासंगिक फल अपने आप मिलेगा। हम ध्येय बनाएं निर्जरा को । कल्पना करें-एक व्यक्ति के सूगर की बीमारी है। बीमार को आसन सिखाए जाते हैं। वह आसनों का प्रयोग करे किन्तु साथ में यह जोड़ दे-मैं आसन करूंगा निर्जरा के लिए। आसन निर्जरा का ही एक प्रकार है। वह निर्जरा के लिए आसन करेगा तो साथ-साथ शरीर भी स्वस्थ होगा और दृष्टिकोण उदात्त बन जाएगा। निर्जरा मुख्य है और शारीरिक स्वास्थ्य प्रासंगिक, किन्तु वह प्रासंगिक होते हुए भी उपेक्षणीय नहीं होता। उसकी उपेक्षा कर हम आत्मा तक पहुंचने का बात नहीं कर सकते। महावीर की भाषा में ध्यान का अधिकारी वह है, जो उत्तम संहनन अर्थात् शारीरिक संस्थान-वज्रऋषभनाराच संहनन वाला है। जो व्यक्ति इस संहनन से सम्पन्न है, वह शुक्लध्यान तक पहुंच सकता है। जो शुक्लध्यान तक नहीं पहुंचता, वह आत्मध्यान तक भी नहीं पहुंच सकता। आज तक जितने भी केवली हुए हैं, जिन्होंने आत्मा का साक्षात अनुभव किया है, जो घातिकर्म से मुक्त हुए हैं, वे ऐसे व्यक्ति ही हुए हैं, जिनके शरीर का संहनन वज्रऋषभनाराच था। उससे कमजोर संहनन वाला वहां जा ही नहीं सकता। एक व्यक्ति शुक्लध्यान करना चाहता है, आत्मा की गहराइयों में जाना चाहता है, विशिष्ट शक्तियों का अवतरण करना चाहता है और उसका शरीर उसको झेलने में सक्षम नहीं है तो क्या होगा? वह उन्हें सह नहीं पाएगा। ध्यान करने वाले अनेक बार कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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