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ध्यान का परिवार उसने कहा-मूर्ख! मेरा इतना समय बर्बाद किया और कुछ नहीं लिया। उसके पास में पंसेरी (पांच सेर) का बाट पड़ा था। उसने पंसेरी उठाई और आदमी पर फेंक दी। इतनी भारी पंसेरी उस आदमी तक पहुंच नहीं पाई। पंसेरी की आवाज सुन उसने पीछे देखा और हंसता हुआ आगे बढ़ गया। दूसरे आदमी ने कहा- कैसे आदमी हो? तुम्हारे पर पंसेरी फेंकी और तुम उस पर गुस्सा ही नहीं कर रहे हो? उसका प्रतिशोध नहीं ले रहे हो? तुम कैसे आदमी हो?'
___ वह हंसते हुए बोला-'भाई साहब! उसने क्या बुरा किया? बेचारे ने पंसेरी फेंकी है तो मुझे पारस समझकर फेंकी है। इसलिए कि वह पारस का स्पर्श पा सोना बन जाएगी। मैं उसका बदला लूं? कैसी मूर्खता की बात कर रहे हो?' ध्यान से जुड़ी सचाइयां
अलग-अगल दृष्टियां हैं, अपनी-अपनी पकड़ है। एक ने पंसेरी का अर्थ दूसरा लिया और दूसरे ने दूसरा लिया। हम इस सचाई को पकड़ें, वास्तविकता को पकड़ें कि केवल ध्यान तक सीमित नहीं रहना है। ध्यान के साथ जितनी जुड़ी हुई सचाइयां हैं, उन सब सचाइयों पर केन्द्रित होना है। आसन, प्राणायाम, अनुप्रेक्षा-ये सब ध्यान से जुड़ी हुई सचाइयां हैं। तन्मयता के साथ अनुप्रेक्षा करना, अनुचिन्तन करना ध्यान का एक महत्त्वपूर्ण सहयोगी तत्त्व है। अनुप्रेक्षा के बिना हम ध्यान में बहुत ज्यादा सफल नहीं हो सकते। ध्यान के द्वारा सत्य को समझा जा सकता है, देखा जा सकता है किन्तु निर्जरा के लिए, व्यवहार और स्वभाव को बदलने के लिए अनुप्रेक्षा बहुत आवश्यक है, संकल्प का प्रयोग भी बहुत आवश्यक है। संकल्प का प्रयोग, संकल्प की पुनरावृत्ति और चिन्तन-ये सब अनुप्रेक्षा के साथ चलते हैं। अशरण अनुप्रेक्षा
___ अनाथी बीमार हो गए। आंख की भयंकर बीमारी। बहुत उपचार किया। संपन्न परिवार, पैसे की कमी नहीं। दूर-दूर के प्राणाचार्यों को बुलाया। आंखें ठीक नहीं हुईं। माता-पिता, भाई-बहिनें-सब विलाप कर रहे हैं पर अनाथी ठीक नहीं हो रहे हैं। मन में एक परिवर्तन आया। अनाथी ने सोचा-मैं अनाथ बन गया, इतना उपचार किया पर कोई परिवर्तन नहीं है। पैसा, परिवार कोई रक्षा करने वाला नहीं है। उसने अपनी ओर झांका, मन में एक संकल्प फूटा-यदि मेरी आंख ठीक हो जाए तो मैं मुनि बन जाऊंगा। एक आश्चर्य घटित हुआ-रात को सोते-सोते संकल्प किया और सुबह आंख बिल्कुल स्वस्थ हो गई। जो आंख अनेक उपचारों के द्वारा स्वस्थ नहीं बनी वह एक संकल्प मात्र से स्वस्थ बन गई। अनाथी प्रव्रज्या ग्रहण कर मुनि बन गए।
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