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________________ तब होता है ध्यान का जन्म अन्यत्व अनुप्रेक्षा संकल्प का प्रयोग, सुझाव, सजेशन, ऑटो सजेशन-ये सब अनुप्रेक्षा के अंग हैं। इन सबका प्रयोग करना ध्यान के लिए आवश्यक है। जो व्यक्ति अनुप्रेक्षा का प्रयोग नहीं करता, वह ध्यान में कैसे सफल हो सकता है? एक अनुप्रेक्षा है अन्यत्व अनुप्रेक्षा-पुद्गल और आत्मा की भिन्नता का अनुभव करना, जड़ और चेतन की भिन्नता का अनुभव करना। अन्यत्व का संस्कार जागृत होगा तो ध्यान में मन ज्यादा लगेगा, ध्यान की स्थिति का निर्माण होगा। अन्यत्व अनुप्रेक्षा नहीं है और ध्यान करने बैठेगा तो मन भटकता रहेगा। प्राणायाम का एक लाभ बतलाया गया-'धारणासु च योग्यता मनस:'-मन की ऐसी स्थिति बनती है कि धारणा की योग्यता बन जाती है। शरीर के किसी भी हिस्से पर मन को टिकाना, तैजस केन्द्र, आनन्द केन्द्र-इन सब केन्द्रों पर मन को टिकाना, इसका नाम है-धारणा। दृष्टांत की भाषा है-जो बछड़ा आंगन में कूद-फांद कर रहा है, उसके गले में रस्सी डाली और खूटे पर बांध दिया, इसका नाम है धारणा। सांख्य दर्शन में अन्यत्व अनुप्रेक्षा को कहा जाता है विवेकख्याति, प्रकृति और पुरुष को भिन्न समझ लेना। जैन दर्शन की भाषा है-पुद्गल और आत्मा को भिन्न समझ लेना। प्राणायाम से इस अन्यत्व बोध विवेकख्याति या भेदविज्ञान का विकास होता है। एकत्व अनुप्रेक्षा ___एक अनुप्रेक्षा है-एकत्व अनुप्रेक्षा। नमि राजा को एक प्रेरणा मिली, एकत्व की अनुप्रेक्षा सध गई। जब चूड़ियां बज रह थीं तो शब्द आ रहा था। चूड़ियां बजनी बन्द हो गईं तो शब्द बन्द हो गया। नमि ने सोचा-नमि एकाकी भलो दोय मिल्यां दुख होय ।' अकेला रहना अच्छा है। जहां दो मिलते हैं दुःख होता है। दुःख और है क्या? दो का मिलना ही दुःख है। दो का तात्पर्य है द्वंद्व और द्वंद्व का होना लड़ाई का होना है। अकेला किससे लड़ेगा? एक व्यक्ति हिमालय की गुफा में बैठा है। वह लड़ेगा तो किससे लड़ेगा? जहां दो होते हैं, लड़ाई शुरू हो जाती है। एकत्व, अनित्य-ये सारी अनुप्रेक्षाएं मन का परिष्कार करती हैं, भावना का परिष्कार करती हैं। इनका प्रगाढ़ अभ्यास किये बिना ध्यान की योग्यता ही नहीं आती। हम चाहें, ध्यान का उपचार कर लें, ध्यान के लिए बैठ जाएं, ध्यान का बाहरी वातावरण बना लें किन्तु जब तक ध्यान की आंतरिक योग्यता प्रकट नहीं होती तब तक अनुप्रेक्षाओं का अच्छा अभ्यास नहीं सधता। तपस्या ध्यान के लिए ___अनुप्रेक्षा, जप, स्वाध्याय, आसन, प्राणायाम, तपस्या-ये सब ध्यान परिवार के सदस्य हैं। एक भाई ने पूछा-मैं उपवास करना चाहता हूं। ध्यान शिविर में करूं या न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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