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________________ ३० तब होता है ध्यान का जन्म कुछ ग्रहण करना भी चाहता है किन्तु चर्बी ने इतना आवरण डाल दिया है कि अब प्रकाश भी उसे छेदकर निकल नहीं पा रही है। आवरण इतना मोटा है कि छेद करना भी मुश्किल हो जाए। जितनी ज्यादा चर्बी होती है, प्रकाश का बाहर आना उतना ही मुश्किल हो जाता है। प्राणायाम करने वाले के चर्बी नहीं बढ़ सकती। चर्बी नहीं बढ़ी, इसका मतलब है-प्रकाश का आवरण क्षीण हो गया, शरीर में बाधा डालने वाले जो तत्व थे, वे क्षीण हो गए। हम अपने शरीर को ज्ञान की रश्मियों के निर्गमन का द्वार बना सकते हैं। हमारे जितने चैतन्यकेन्द्र हैं, वे सारे ज्ञान की रश्मियों के बाहर निकलने के स्रोत हैं। जिन चैतन्यकेन्द्रों का चुनाव किया है, वहां से ज्ञान की रश्मियां बाहर निकल सकती हैं। जहां विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र (मेग्नो इलेक्ट्रोनिक फिल्ड) बना हुआ है वहां से वे रश्मियां बाहर निकल सकती हैं। जब उन पर बहुत परतें चढ़ जाएं तब वे बाहर कहां से आएंगी? नया स्रोत ____ मनुष्य ने विकास किया, ज्ञान के पांच स्रोत बना लिए। छठा स्रोत बनाना बड़ा कठिन है। कुछ व्यक्तियों में यह सहज विकसित होता है पर सबमें सहज नहीं होता। प्राणायाम के द्वारा प्रकाश का आवरण क्षीण हो जाता है, एक नया स्रोत विकसित हो सकता है। जिसका प्राणायाम सध गया, शरीर उसके योग्य बन गया तो फिर वह व्यक्ति अनेक स्रोतों का निर्माण कर सकता है। इन्ट्यूशन, प्रतिभा, प्रज्ञा-सबके लिए स्रोत का निर्माण कर सकता है। स्रोत को उद्घाटित करने के लिए प्राण का संयम बहुत जरूरी है। प्राण का संयम करने वाला व्यक्ति उस स्थिति का निर्माण कर सकता है, जिसकी सामान्य आदमी कल्पना भी नहीं कर सकता। भद्रबाहु स्वामी ने महाप्राण ध्यान की साधना की। बारह वर्ष का प्रयोग है महाप्राण ध्यान की साधना का। उसमें प्राण को इतना सूक्ष्म बना लिया जाता है कि पता ही नहीं चलता-श्वास आ रहा है या नहीं आ रहा है। जब उस स्थिति में चले जाते हैं, प्राण अवरुद्ध हो जाता है, विषमता समाप्त हो जाती है तब भीतर एक प्रस्फोट होता है और चेतना बाहर आती है। प्राणायाम का यह जो मूल्य है, उसका अंकन करना चाहिए। बहुत बार सचाई को पकड़ा नहीं जाता। जो व्यक्ति भीतर तक पहुंच जाता है, उसकी पकड़ एक प्रकार की होती है और जो बाहर ही बाहर रहता है, उसकी पकड़ दूसरे प्रकार की होती है। अपनी अपनी दृष्टि एक व्यक्ति जा रहा था। सामने दुकानदार बैठा था। दुकान में वह रुका थोड़ी देर बातचीत की और आगे बढ़ गया। दुकानदार क्रोधी था। वह क्रोध में आ गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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