________________
ध्यान का प्रारम्भ कहां से करें?
१३
क्या है? उन्होंने बहुत सुन्दर समाधान दिया-'श्रुतज्ञानमदासीनं यथार्थमतिनिश्चलम ।' श्रुतज्ञान का नाम है ध्यान । ज्ञान और ध्यान में अन्तर क्या है? पानी और बर्फ में अन्तर क्या है? जब तक तरल है तब तक पानी है और जब जम गया तब बर्फ बन गया। जो तरल है, व्यग्र है, वह है ज्ञान और जो ज्ञान एकाग्र है, जमा हुआ है, वह ध्यान है। दूध है ज्ञान, दही जम गया, ध्यान हो गया। ज्ञान और ध्यान दो नहीं हैं। ध्यान ज्ञान से शून्य है तो मूरों के काम का हो जाएगा। ज्ञान से शून्य होना नहीं है। ज्ञान हमारी आत्मा का स्वभाव है। ज्ञान के विपरीत कोई आचरण क्यों होना चाहिए? वस्तुत: ज्ञान ही ध्यान है, यदि ज्ञान को जमा लें, उसकी तरलता को सघनता में बदल
दें।
उदासीन ज्ञान
प्रश्न है-ज्ञान को ध्यान में बदलने का साधन क्या है? उसके तीन साधन हैं--१. ज्ञान उदासीन हो, २. ज्ञान यथार्थ हो, ३. ज्ञान अतिनिश्चल हो।
ज्ञान को उदासीन बनाएं। उदासीन बनाने का अर्थ है-राग-द्वेष से मुक्त बनाना। जो ज्ञान राग-द्वेष से मुक्त है, वह ज्ञान ध्यान है। व्यक्ति पद्मासन लगाकर ध्यान में नहीं बैठा है, उसने श्वास पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया है किन्तु यदि उसने उस क्षण में राग-द्वेष से मुक्त ज्ञान का अनुभव किया है तो वह ध्यान है। यह एक बहुत व्यापक परिभाषा है। कायोत्सर्ग की मुद्रा में ध्यान करें, यह तो प्रारम्भिक प्रयोग है, जिससे इस स्थिति का निर्माण हो जाए। निरन्तर अभ्यास से चलते-फिरते, जागते-सोते इस स्थिति का निर्माण हो जाता है। जिस क्षण राग-द्वेष मुक्त जीवन जीया, हमारा ध्यान सध गया। यथार्थ ज्ञान
दूसरी बात है-ज्ञान यथार्थ हो, झूठी कल्पना न हो, असम्भव कल्पना न हो। जहां झूठी कल्पनाएं होती हैं वहां पूरा ज्ञान भी नहीं बनता, ध्यान कहां से बनेगा?
दो गप्पी मिल गए। एक ने कहा-जब मेरा दादा मरा था तब दस लाख रुपये छोड़कर मरा था। उसके पास में कोड़ी भी नहीं थी, किन्तु मरते समय दस लाख छोड़ गया। दूसरा गप्पी बोला-क्या विशेषता हांक रहे हो? मेरा दादा जब मरा था, तब वह सारी दुनिया को छोड़कर मरा था।
असंभव, झूठी और मिथ्या कल्पनाओं से कुछ भी नहीं बनता। ज्ञान यथार्थ होना चाहिए। यथार्थ ज्ञान का आविर्भाव हो जाए तो ध्यान सध जाए।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org