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तब होता है ध्यान का जन्म
अतिनिश्चल ज्ञान
तीसरी बात है - ज्ञान चंचलता से रहित हो । अतिनिश्चल ज्ञान है ध्यान । अचंचलता'" - इस बिन्दु को पकड़ें। चंचलता ही राग-द्वेष को ला रही है, चंचलता ही थार्थको यथार्थ बना रही है। शरीर, वाणी और मन की चंचलता का संयम हो जाए तो ध्यान सध जाए । महावीर का वचन है- तीन प्रकार का संवर होता है - मन का संवर, वाणी का संवर और काया का संवर । आसन की स्थिति, कायोत्सर्ग - यह काया का संवर है। अल्प भाषण अथवा मौन वाणी का संवर है। एकाग्रता मन का संवर है । बहुत लोग जिज्ञासा करते हैं - हम प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करते हैं। क्या उससे संवर और निर्जरा होती है? मैं कहता हूं-उससे और होता ही क्या है? जब आप प्रवृत्ति का संवर करते हैं, एकाग्रता करते हैं तब संवर और निर्जरा दोनों होते हैं। अगर संवर और निर्जरा न हो तो ध्यान हमारे लिए कोई काम का नहीं है। ध्यान का महत्त्व इसीलिए है कि उससे संवर और निर्जरा की उत्कृष्टता उपलब्ध होती है ।
चंचलता को कम कैसे करें? यह बड़ा जटिल प्रश्न है। उसके लिए एक अभ्यास का क्रम है। पहले प्रारम्भ कहां से करें ? हम श्रुत से करें यानि शब्द से ही प्रारम्भ करें । कोई शब्द या विचार लें । कायोत्सर्ग की मुद्रा में बैठ जाएं, आंखें बन्द रहे और उसी विचार को देखते रहें। कल्पना करें - किसी ने ऊँ शब्द ले लिया, किसी ने 'अर्हम्' शब्द ले लिया। किसी ने यह संकल्प ले लिया- मैं अपना विकास करना चाहता हूं। इस मंत्र अथवा संकल्प को बंद आंखों से पढ़ें । उस शब्द पर, उस विचार पर आप टिकते चले जाएं। यदि यह अभ्यास आधा घण्टा तक हो जाए केवल एक ही विचार को पढ़ें, बीच
कोई दूसरा विचार न आए, तो मानना चाहिए - आपका ध्यान परिपक्व हो गया। यदि दो-तीन मिनट 'टिके तो मानना चाहिए- ध्यान का प्रारम्भ हो गया ।
ध्यान की मात्रा
जैन आगमों में पुद्गल के बारे में बहुत विवेचन है। एक परमाणु एक गुण वाला है और एक परमाणु अनन्त गुण वाला है । इसमें कितना अन्तर है । एक एक गुण वाला है और एक अनन्त गुण वाला - यह मात्रा का विभेद क्यों? यह शक्त्यांश का भेद है, शक्ति के अंशों का भेद है । एक परमाणु एक गुण वाला है। उसमें अनन्त अविभागी प्रतिच्छेद मिलते हैं तो वह दो गुण वाला बन जाएगा । फिर अनन्त अविभाग का योग बनता है तो वह तीन गुण वाला बन जाएगा। ऐसा होते-होते अनन्त गुण तक पहुंच सकता है। ध्यान की मात्रा का यही संदर्भ है । एक गुण ध्यान की मात्रा, दो गुण ध्यान की मात्रा क्रमशः वृद्धि होती चली जाए तो अनन्त गुण ध्यान की मात्रा तक पहुंच सकते हैं । यदि प्रारम्भ हो जाए, विकास की यात्रा शुरू हो जाए तो विकास की दिशा लक्ष्य
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