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जाता है तो फिर बाधाएं ही बाधाएं प्रस्तुत हो जाएंगी।
है?'
कुत्ता दौड़ता हुआ जा रहा था। एक समझदार व्यक्ति ने पूछा- 'कहां जा रहा
'मैं तीर्थयात्रा पर जा रहा हूं ।'
'कब तक पहुंच जाएगा?'
'अब तक तो पहुंच जाता । '
'फिर क्यों विलम्ब हो रहा है? '
तब होता है ध्यान का जन्म
'विलम्ब मेरे ही साथी कर रहे हैं। मैं जहां भी जाता हूं, जिस गांव में भी जाता हूं, मेरी बिरादरी के लोग ही मुझे आगे नहीं जाने देते ।'
एक कुत्ता जब कहीं दूसरी जगह जाता है, तब उस स्थान के कुत्ते उसके पीछे पड़ जाते हैं ।
कुत्ते ने ठीक कहा - 'मैं आज तक पहुंच जाता पर मेरे जो भाई-बंधु हैं, वे मुझे आगे नहीं बढ़ने देते । '
जब तक कषाय है, परिग्रह और आसक्ति प्रबल है तब तक ये मन की एकाग्रता को कैसे बढ़ने देंगे? वहीं रोक लेंगे। हम स्थिति का परिवर्तन करें, केवल पदार्थ का नहीं । उवपास किया, खाना छोड़ दिया, यह पदार्थ का संयम है । प्रश्न है खाने की भावना छूटी या नहीं ? उपवास किया। रात का समय है, नींद नहीं आ रही है । मस्तिष्क में चिंतन चल रहा है-आज पारणे में दूध पीऊंगा, मूंग खाऊंगा, यह खाऊंगा, वह खाऊंगा । यह पदार्थ का परिवर्तन है, स्थिति का नहीं । पदार्थ के प्रति आसक्ति तो वैसी ही बनी हुई है । केवल पदार्थ का परिवर्तन करने मात्र से ध्यान का अवतरण नहीं होता । ध्यान का अवतरण तब होगा जब स्थिति का परिवर्तन हो जाए। पदार्थ भी छूटे, साथ-साथ को पकड़कर रखने वाली हमारी चेतना भी बदल जाए, वह भी छूट जाए। मन की चंचलता जब तक होती है तब तक ऐसा संभव नहीं होता ।
परिणाम मन की चंचलता का
हमें सबसे पहले जिस बिन्दु को पकड़ना है, वह है मन की चंचलता । चंचलता की अवस्था में आसक्ति कम नहीं होती, कषाय कम नहीं होता । जब मन चंचल होता है, दो स्थितियां बनती हैं प्रयोजनशून्यता और क्रमबद्धता का अभाव ।
मन बहुत चंचल है इसलिए आदमी बिना प्रयोजन के कार्य करता है । काम करना, श्रम करना जीवन के लिए वरदान है, किन्तु प्रयोजन - शून्य कार्य करना जीवन के लिए अभिशाप है। आज अनावश्यक प्रवृत्तियां कितनी बढ़ती जा रही हैं । आज के
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