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________________ तब होता है ध्यान का जन्म सन्तति होगी तब ध्यान का जन्म होगा। एक विषय पर लगातार दस मिनट, बीस मिनट, आधा घंटा, घंटा तक हमारा चित्त स्थिर हो जाए, केवल उसी विषय पर हम केन्द्रित हो जाएं, उसका नाम है ध्यान । श्वास को देखते चले गये, धारणा होती चली गई, वह ध्यान का पहला रूप है। धारणा, ध्यान और समाधि-तीनों संलग्न हैं। किंतु जब तक एक बिंदु पर केन्द्रित नहीं है तब तक वह धारणा है। हमारी यह अवधारणा स्पष्ट होनी चाहिए कि जब तक मन की चंचलता रहती है, ध्यान सधता नहीं है। दीर्घश्वास का प्रयोग इसलिए है कि चंचलता थोड़ी कम हो जाए। यह चंचलता को कम करने का प्रयोग और ध्यान का पूर्वाभ्यास है। समवृत्ति श्वास प्रेक्षा का प्रयोग इसलिए है कि प्राण का संतुलन और नाड़ी-तंत्र का संतुलन सधे, चंचलता कम हो जाए। एक नथुने से श्वास लेना, दूसरे से निकालना, फिर दूसरे से लेना, पहले से निकालना-यह समवृत्ति श्वास की पद्धति है। इससे एकाग्रता भी बढ़ती है, साथ-साथ सुंतलन भी बनता है। सम्यक् श्वास का प्रयोग भी इसीलिए है। नाभि-तैजस केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित करें। श्वास लेते समय पेट फूलता है, उसका अनुभव करें और श्वास छोड़ते समय पेट सिकुड़ता है, उसका अनुभव करें। श्वास लें और पेट न फूले, श्वास छोड़ें और पेट न सिकुड़े, भीतर न जाए वह मिथ्या श्वास है, गलत श्वास है, सम्यक् श्वास नहीं है। जो दीर्घ और मन्द होता है, वहीं सम्यक् श्वास होता है। जो श्वास छोटा आता है, वह मिथ्या श्वास होता है। श्वास के ये सारे प्रयोग इसलिए हैं कि ध्यान का अवतरण हो। इन प्रयोगों के द्वारा हम केवल ध्यान का वातावरण बना रहे हैं, ऐसी पृष्ठभूमि तैयार कर रहे हैं जिससे कि ध्यान का जन्म हो जाए। पदार्थ को नहीं, स्थिति को बदलें बहुत लोगों की शिकायत रहती है-माला जपते हैं, ध्यान भी करते हैं, पर मन की चंचलता कम नहीं होती? चंचलता कम कैसे होगी? जितनी आसक्ति उतनी चंचलता । आसक्ति को एक इंच भी कम करना नहीं चाहते और मन की चंचलता को मिटाना चाहते हैं, यह कैसे संभव है? व्यक्ति माला फेरने बैठा। माला फेरने से पहले किसी के साथ लड़ाई-झगड़ा हो गया, बोल-चाल हो गई। माला फेरते समय दिमाग में तो वही बात घूम रही है कि उसने मुझे ऐसा कह दिया। बहू सोचती है-सास ने मुझे ऐसा कह दिया और सास सोचती है-बहू ने मुझे ऐसा कह दिया। उसने मुझे ऐसा क्यों कहा? आप सोच रहे हैं और चाह रहे हैं कि ध्यान हो जाए, कैसे संभव होगा? बाहर में परिग्रह आपके लिए जरूरी हो सकता है। जीवन को चलाना है। परिग्रह के बिना जीवन चलता नहीं है। बाहर में परिग्रह रहे पर भीतर में परिग्रह न रहे, इस स्थिति का निर्माण हो तो ध्यान का जन्म हो सकता है। पदार्थ को नहीं, स्थिति को बदलना है। स्थिति को नहीं बदला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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