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तब होता है ध्यान का जन्म
वैज्ञानिक जगत का हम विश्लेषण करें तो पता चलेगा, जैसे पदार्थ का विस्तार हुआ है वैसे ही मानसिक चंचलता बढ़ी है और मानसिक चंचलता बढ़ी है इसीलिए ही पदार्थ का इतना विस्तार हुआ है, अन्यथा नहीं होता । आज अनावश्यक हिंसा हो रही है। कोई जमाना था आदमी अनावश्यक हिंसा करता था । जीवन चलाने के लिए हिंसा करनी पड़ती, अपनी सुरक्षा के लिए हिंसा करनी पड़ती। यह आवश्यक हिंसा महावीर की भाषा में अर्थदंड है। आज का युग हो गया अनर्थदंड का । अनावश्यक हिंसा बढ़ गई है। कोई प्रयोजन नहीं, बिना मतलब बम विस्फोट कर दिया, किसी को चलते हुए मार दिया । यह अनावश्यक हिंसा क्यों हो रही है ? जितनी चंचलता बढ़ेगी, उतनी प्रयोजन- शून्यता बढ़ेगी । एक विद्यार्थी विश्वविद्यालय की छत पर चढ़ा और उसने दस-बीस लोगों को पिस्तोल की गोली से मार दिया । पूछा गया - क्यों मारा? तुम्हारा प्रयोजन क्या था? उसने कहा - प्रयोजन कुछ भी नहीं । मैंने फिल्म में ऐसा देखा था और वैसा कर दिया। प्रयोजन - शून्यता एक परिणाम है। जितनी मन की चंचलता होगी उतनी ही प्रयोजन - शून्य अनावश्यक प्रवृत्ति का विस्तार होता चला जाएगा। यह एक बहुत खतरनाक मोड़ है आज के युग का, जहां अनर्थदंड चल रहा है ।
दूसरी बात है - क्रमबद्धता का अभाव । मन की एकाग्रता है तो व्यक्ति क्रमबद्ध कार्य करेगा। प्रात:काल यह करना है, मध्याह्न में यह करना है, सायंकाल यह करना है। सारा कार्य क्रमबद्ध चलेगा। जब मन की चंचलता बहुत होती है, क्रमबद्धता समाप्त हो जाती है। एक व्यक्ति ने कहा- मेरी बड़ी समस्या है। मैंने पूछा- क्या समस्या है ? बोला- - समस्या यह है कि मैं एक काम शुरू करता हूं वह पूरा नहीं होता और बीच में ही दूसरा शुरू कर देता हूं। कार्य पूरा एक भी नहीं होता ।
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जहां मन की चंचलता अधिक होती है, वहां ये दोनों समस्याएं पैदा हो जाती हैं- प्रयोजन - शून्य अनावश्यक प्रवृत्तियों का विकास एवं क्रमबद्धता का अभाव । इन्द्रिय-विजय
पांचवां तत्त्व है - इन्द्रिय-विजय । इन्द्रियों पर विजय नहीं है तो ध्यान का जन्म कहां होगा? एक व्यक्ति बहुत पेटु है । खाने में भी रस है । ठूंस-ठूंस कर खा लेता है और फिर सोचता है - ध्यान करूं। क्या ध्यान जन्म लेगा? उसने ध्यान के लिए तो स्थान ही नहीं छोड़ा। पेट इतना भर गया कि ध्यान आएगा तो बैठेगा कहां? उसके लिए अवकाश ही नहीं है । अस्वाद - व्रत का विकास किए बिना, अस्पर्श का विकास किए बिना. अशब्द का विकास किए बिना ध्यान कहां होगा?
मन में उत्सुकता है । कहीं थोड़ा-सा शब्द हुआ । तत्काल ध्यान चला
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