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तनाव और ध्यान
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लाभ और अलाभ
लाभ और अलाभ-इन दोनों स्थितियों में तनाव भी पैदा होता है और इन दोनों स्थितियों में समता भी पैदा हो सकती है। समता के क्षेत्र दोनों हैं। लाभ होने पर भी समता और अलाभ होने पर भी समता। जब लाभ होता है तब व्यक्ति सोचता है-धन मिला है, संयोग हुआ है, किन्तु यह अनित्य है। लक्ष्मी किसी के साथ स्थिर नहीं रहती। उसका किसी के साथ गठबंधन नहीं होता। राजस्थान के कवियों ने लिखा-यह पृथ्वी कुंआरी कन्या है। आज तक इसकी कभी किसी से शादी नहीं हुई। लक्ष्मी ने किसी के साथ शादी नहीं की, इस पृथ्वी ने भी किसी के साथ शादी नहीं की। लोगों ने इससे मोह किया पर इसने किसी के साथ मोह नहीं किया। आई और चली गई। जब यह भावना जाग जाती है, अनित्यता की अनुप्रेक्षा से मस्तिष्क को शिक्षित कर लिया जाता है. तब न लाभ तनाव पैदा करता है और न अलाभ तनाव पैदा करता है। अनित्य अनुप्रेक्षा के द्वारा जब यह बात मस्तिष्क के प्रकोष्ठ में जम गई-जो कुछ है, सब संयोग है, मेरा नहीं है, मात्र संयोग है, तब तनाव कहां से आएगा? आप अभी इस हॉल में बैठे हैं। यह मात्र संयोग है। आप आए और बैठ गए। किन्तु दिन भर या प्रलंब काल तक बैठे नहीं रहेंगे। एक घण्टा पूरा होते ही यहां से उठकर चले जाएंगे। इसलिए कि यह मात्र संयोग है। कोई भी संयोग नित्य नहीं होता। संयोग को स्थाई मान लेने से बड़ी कोई भ्रांति नहीं होती और संयोग को शाश्वत मान लेने से बड़ी मुर्खता भी नहीं होती। मस्तिष्क इस भावना से शिक्षित हो जाए तो लाभ भी तनाव पैदा नहीं करेगा और अलाभ भी तनाव पैदा नहीं करेगा। यह मान लिया-संयोग अनित्य है, संयोग का वियोग निश्चित होता है तो वियोग होने पर भी अथवा प्राप्त न होने पर भी तनाव नहीं आएगा।
मुनि को समता का प्रतीक माना गया। साधु समता का प्रतीक कैसे होता है? उदाहरण की भाषा है--एक साधु भिक्षा के लिए गया, काफी घरों में घूमा पर भिक्षा नहीं मिली। वह वापिस खाली आ गया। तनाव पैदा होने का कारण स्पष्ट है। भूख थी इसलिए भिक्षा के लिए गया किन्तु मिला कुछ भी नहीं। इस अलाभ की स्थिति में तनाव पैदा होना चाहिए पर तनाव पैदा नहीं होता क्योंकि उसका मस्तिष्क शिक्षित है। वह सोचता है-चलो, कोई बात नहीं, आहार करना भी एक काम था और आहार नहीं मिला तो सहज उपवास हो गया। कितना अच्छा हुआ कि आज सहज मुझे उपवास करने का मौका मिल गया। ऐसे व्यक्ति में तनाव कैसे पैदा होगा, जिसका मस्तिष्क शिक्षित हो जाता है? मस्तिष्क का वह प्रकोष्ठ, जो समता को पैदा करता है, जागृत हो जाए तो तनाव पैदा नहीं होगा।
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