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नशा और ध्यान
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नहीं मिला। ये आंसू इसलिए आ रहे हैं कि न जाने ऐसा सुख फिर कब मिलेगा। ध्यान की शरण में जाएं
प्रश्न होता है कि ध्यान-शिविर में कौनसा सुख मिला? कौनसा बढ़िया भोजन मिला? कौनसा पदार्थ मिला और कौनसा धन मिला गया, जो इतना सुख मिल गया? हम सोच नहीं सकते कि हमारे भीतर में कितना सुख है। अगर वह स्थिति बन जाती है तो नशा अपने आप छूट जाता है। नशे की मन में ही नहीं आती। आदमी नशे के सामने ही नहीं देखता। वह नहीं होता है तो आदमी को विकल्प खोजना होता है।
ध्यान नशे का विकल्प है। नशा या ध्यान-दोनों में से आदमी को चुनाव करना है। यदि नशा चुनता है तो वह एक बार तो चिंता को मिटाता है किन्तु वह बुरा इसलिए है कि उसके परिणाम बड़े बुरे हैं। अनेक भयंकर बीमारियां, प्रमाद-जनित समस्याएं और दायित्व-बोध का अभाव-ये सब नशे की निष्पत्तियां हैं। इन कारणों से नशा खराब है और ध्यान सुख देने वाला है। जो ध्यान की शरण में जाएगा, उसे नशे की शरण में जाने की कभी आवश्यकता ही नहीं रहेगी।
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