SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तब होता है ध्यान का जन्म १०६ वह वैज्ञानिक नहीं हो सकता। वह खोज करने वाला अथवा अनुसंधाता नहीं हो सकता । जो नए पर्यायों और नए तथ्यों को खोजता है, उसे वह दृष्टि स्वप्न में मिलती है अथवा गहन ध्यान की अवस्था में मिलती है। कभी-कभी वह ध्यान की बहुत गहरी अवस्था में चला जाता है । वह वैज्ञानिक दुनिया की दृष्टि में विक्षिप्त जैसा हो जाता है । वह अपने अनुसंधान में इतना खोया रहता है कि उसे बाहरी दुनिया का नहीं, अपने जीवन से जुड़े क्रिया-कलापों का भी बोध नहीं रहता । । प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ट्रेन से यात्रा कर रहे थे। टी. टी. यात्रियों की टिकटें चैक कर रहा था । उसने आइंस्टीन से टिकट दिखाने को कहा। आइंस्टीन ने अपनी जेबों को टटोला, इधर-उधर देखा पर टिकट नहीं मिली। टी. टी. बोला- 'महाशय ! मैंने आपको पहचान लिया है। आप अब कष्ट न करें क्योंकि मैं जानता हूं- आप हमारे देश के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक आइंस्टीन हैं । आप कभी रेल सेवा की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करेंगे, अप्रामाणिकता नहीं करेंगे ।' आइंस्टीन बोले- ' भाई ! तुम्हारा कथन सही है किन्तु मुसीबत मेरे सामने है । टिकट बिना पता कैसे चलेगा कि मुझे कहां उतरना है।' यह घटना सुनकर हंसी आ सकती है। दुनिया का महान वैज्ञानिक और महान गणितज्ञ जिसने अपनी खोजों और गणितीय समीकरणों से सारे संसार को प्रभावित किया, उसे यह भी पता नहीं है कि उसे कहां जाना है । वे इतनी गहराई में खो जाते हैं कि बाहरी बातों का पता ही नहीं रहता । यह एक तथ्य है - बिना एकाग्रता के अथवा बिना ध्यान के कोई भी आदमी गहरे सत्यों को देख नहीं सकता । जितने भी महान वैज्ञानिकों द्वारा सत्य खोजे गए हैं, वे गहरी एकाग्रता की दशा में ही उपलब्ध हुए हैं । व्यक्ति मरना क्यों चाहता है? हमारे सामने मस्तिष्कीय प्रशिक्षण के दोनों आयाम हैं-चिन्तन का आयाम और ध्यान का आयाम । जो अपना रूपांतरण करना चाहता है, उसे ध्यान अवश्य करना चाहिए । आज ध्यान का केवल धार्मिक क्षेत्र में ही महत्त्व नहीं है । जो व्यक्ति अच्छा जीवन जीना चाहता है, संतुलन, सहअस्तित्व और शांत सहवास चाहता है, अपने भीतर उठने वाली मानसिक तरंगों को शांत रखना चाहता है उसके लिए भी ध्यान का महत्त्व कम नहीं है । मैंने बहुत लोगों से यह सुना - अमुक व्यक्ति जीना नहीं चाहता, मरना है । यह स्वर क्यों उभरता है? एक ओर आगम कहता है- प्रत्येक व्यक्ति जीना चाहता है, उसे जीवन प्रिय है । दूसरी ओर व्यक्ति कहता है- 'मैं जीवन से ऊब चुका हूं। ऐसे जीवन से मरना अच्छा है।' यह मरने की बात क्यों आती है ? व्यक्ति कभी जहर खा लेता है, कभी भारी मात्रा में नींद की गोलियां ले लेता है, कभी कुछ आत्मघाती प्रवृत्ि कर लेता है । वह मरना चाहता है और इसलिए मरने के साधनों का प्रयोग कर लेत चाहता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy