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________________ १०७ ध्यान और मस्तिष्कीय प्रशिक्षण प्रश्न है-वह ऐसा क्यों करता है? ऐसा लगता है कि वह अपनी मानसिकता को सम्यक् प्रकार से समझ नहीं पाता, उसे बदल नहीं पाता। वह सोचता है, यह जीवन क्या है? दु:खों का जाल है। इतनी मानसिक वेदना है, इतना संताप और भार है। वह इन सबसे व्यथित होकर मरने की सोचने लग जाता है, आत्महत्या कर लेता है। हिन्दुस्तान में प्रतिवर्ष हजारों आत्महत्याएं होती हैं। जापान, अमेरिका जैसे विकसित देशों में आत्महत्या की घटनाएं बहुत अधिक होती हैं। इसलिए होती हैं कि जीवन को ठीक से समझा नहीं गया, मन को संभाला नहीं गया। जिस बच्चे को ठीक से संभाला नहीं जाता, वह उदंड बन जाता है। हमारा मन भी एक बच्चे जैसा है। उसे संभाला नहीं जाता है तो वह उदंड और आक्रामक बन जाता है। इतना आक्रामक बन जाता है कि वह व्यक्ति को ही मरने के लिए विवश कर देता है। दूसरा कोई नहीं आएगा, व्यक्ति का मन ही उसे मारने के लिए तैयार हो जाएगा। आत्महत्या का कारण भी यही है। समस्या है प्रवृत्ति की आवृत्ति मन को समझना, मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना इसलिए जरूरी है कि आदमी घृणा और ईर्ष्या से मुक्त जीवन जी सके, सहिष्णुता और अहिंसा का जीवन जी सके। आज की बहुत बड़ी समस्या है असहिष्णुता । जो माता-पिता हैं और जिनके बच्चे हैं, वे जानते हैं-आजकल के बच्चों में सहिष्णुता कितनी है। यदि पिता कुछ कह देता है तो दस-बारह वर्ष का लड़का घर से भाग जाता है। लड़कियां भी घर से पलायन कर जाती हैं। यह बीमारी क्यों बढ़ रही है? इसलिए कि मन और मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने का प्रयत्न नहीं किया गया। यदि अहिंसा, मैत्री और करुणा की भावना से मस्तिष्क प्रशिक्षित हो जाए तो ये घटनाएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी। मस्तिष्कीय प्रशिक्षण होने पर ऐसी घटनाओं की संभावना ही नहीं रहती। ऐसा व्यक्ति अपने प्रति न्याय करेगा, अच्छा जीवन जीएगा। जिसका मस्तिष्क प्रशिक्षित नहीं होता, वह दुष्प्रवृत्ति की आवृत्ति करता चला जाता है-घृणा की आवृत्ति, हिंसा और आक्रामकता की आवृत्ति। ये आवृत्तियां होते-होते दिमाग ऐसा बन जाता है कि वह परेशान हो जाता है। उसे ऐसा लगता है, मरने के सिवाय अब कोई विकल्प नहीं है। नकारात्मक वृत्ति की आवृत्तियों से आदमी ऊब जाता है। एक नेता को सभा में भाषण देना था। समय था पन्द्रह मिनट । वह एक घण्टे तक बोलता रहा। इतना धैर्य श्रोताओं में कहां से आता? श्रोताओं ने मंच पर चप्पल और जूते फेंकने शुरू कर दिए। नेता शर्मिंदा हुआ। वह आफिस में आया। सचिव को बुलाकर डांटा-तुमने मेरी बेइज्जती करा दी। इतना लम्बा भाषण लिख दिया। मुझे बोलना था पंद्रह मिनट । तुमने एक घण्टे का भाषण बना दिया। सचिव ने कहा-महाशय ! भाषण तो पन्द्रह मिनट का ही था। तीन उसकी कार्बन कापियां थीं। आप एक भाषण की चारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003158
Book TitleTab Hota Hai Dhyana ka Janma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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