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या बीज बबूल का, आम कहां से होय ?
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वेदनीय होते हैं । कुछ कर्म ऐसे होते हैं, जिनका इस दृष्टजीवन, वर्तमान जीवन में ही परिपाक आ जाता है। ऐसा लगता है - मानसिक तनाव या मानसिक बीमारियां दृष्ट- जन्म वेदनीय का परिपाक हैं और ये - मानवीय क्रूरता के कारण बढ़ती चली जा रही हैं । ये दुःख और समस्याएं केवल आनुवंशिकता या परिस्थिति के साथ जुड़ी हुई नहीं हैं, इसलिए आचार का निर्धारण करते समय मनुष्य के आचरण पर भी ध्यान देना होगा । किस प्रकार का आचरण किस प्रकार की समस्या पैदा करता है और किस प्रकार का भंडार भरता है, यह जानना भी आचार-निर्धारण के लिए अपेक्षित होता है । ज्ञान-मीमांसा : कर्म-मीमांसा
एक है स्मृति का भंडार । व्यक्ति ने जो देखा, जैसा उत्प्रेषण हुआ, जैसी धारण बनी, वैसी भावना हो आई । यह हैं -ज्ञान-मीमांसा का क्षेत्र । इसका संबंध ज्ञान-मीमांसा से है । आचरण का संबंध कर्म - मीमांसा से है । दोनों की मीमांसा अलग-अलग है, दोनों में विरोधाभास है । स्मृति होना भी एक परिणाम है किन्तु इसका संबंध केवल हमारी ज्ञान की प्रक्रिया से है । हमने जैसी धारण की, वैसी स्मृति हो आई । ठीक ऐसा ही क्रम कर्म के संबंध में होता है । हमने जैसा आचरण किया वही आचरण हमारे भीतर चला गया, रूढ़ हो गया, भंडार में जमा हो गया। उसे कोई उद्दीपन मिला, निमित्त मिला, काल का परिपाक आया, वह प्रकट हो गया ।
बंध के हेतुओं का ज्ञान एक धार्मिक के लिए बहुत जरूरी है । इस ज्ञान के द्वारा मनोविज्ञान की बहुत सारी पहेलियों को सुलझाया जा सकता है । इससे जीवन के प्रति जागरूक होने का अवसर मिलता है । जब व्यक्ति को इस बात का बोध होगा
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