________________
३२
नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ -मेरे प्रत्येक आचरण का परिणाम भी मुझे भुगतना है, तब वह प्रत्येक कर्म के प्रति जागरूक बनेगा। जागरूकता के सूत्र
जीवन में जागरूकता आए, व्यक्ति प्रत्येक आचरण के प्रति जागरूक बने तो वह अकरणीय कार्यों से बच सकता है। प्रत्येक व्यक्ति भोजन करता है । वह सोचे मैं जो खा रहा हूं, उसका परिणाम क्या होगा? परिणाम को दो दृष्टियों से देखा जा सकता है । यदि ज्यादा खाया है तो अजीर्ण होगा, पाचन नहीं होगा, बड़ी परेशानी हो जाएगी, यह अल्पकालिक परिणाम है । दीर्घकाल की दृष्टि से सोचें - मैं जो खा रहा हूं, उसका शरीर पर क्या प्रभाव होगा ? मुझे जल्दी बूढ़ा बनना पड़ेगा, बीमारियां घेर लेंगी। यदि इसी प्रकार प्रत्येक कार्य की दोनों दृष्टियों से मीमांसा की जाए तो आदमी का आचार अपने आप स्वस्थ बन जाता है। वह ऐसे किसी आचरण को करना नहीं चाहेगा, जिससे अप्रतिष्ठा, दु:ख, प्रतिकूल संवेदन, अल्प-आयु को भोगना पड़े। इस जागरूकता को जगाना ही ध्यान का प्रयोजन है । आदमी में मूर्छा है, मूढ़ता है, इसलिए वह जानते हुए भी गलत काम कर लेता है । यदि वह जागरूक है तो संभल जाएगा। इसीलिए ध्यान के साथ साथ जागरूकता के सूत्रों को समझना जरूरी है । आश्रव, बंध, पुण्य और पाप -ये चार ऐसे सूत्र हैं, जिनके द्वारा जागरूकता को बहुत आगे बढ़ाया जा सकता है।
Jain Education International
al
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org