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नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ
का विपाक होता है तब सब कुछ मिलने पर भी चैन नहीं मिलता ।
सातवेदनीय : अनुकंपा का भाव
एक व्यक्ति जिसमें अनुकंपा का भाव है, वह सबको आत्मवत् समझता है, किसी को सताना नहीं चाहता, दूसरों को सताने में प्रकंपन होता है । वह सोचता है -दूसरों को नहीं, अपने आपको सता रहा हूं ।
जब यह अनुकंपा का भाव जागता है तब सातवेदनीय कर्म का बंध होता है । जब सातवेदनीय कर्म का विपाक होता है, कुछ न होने पर भी आदमी सदा सुखी रहता है । हमने ऐसे लोगों को देखा है, जिनके पास सुख का कोई साधन नहीं है किन्तु वे इतनी मस्ती और आनंद में डूबे रहते हैं कि उन्हें देखकर किसी भी व्यक्ति को ईर्ष्या हो जाए। उनकी प्रसन्नता का कारण है - सात वेदनीय कर्म का उदय । धन मिल जाना ही पुण्य का उदय नहीं है। मैंने बड़े-बड़े धनपतियों को अपनी आंखों के सामने रोते हुए देखा है । उनके दुःख-पूर्ण रुदन को देखते ही दया आ जाए। सुखी होने का संबंध है सात वेदनीय कर्म से और उस सुख का परिपाक होता है अनुकंपा का जीवन जीने से । जो व्यक्ति क्रूरता का जीवन जीता है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता । आज सामाजिक जीवन में मनुष्यों के प्रति, पशुओं के प्रति भयंकर क्रूरता है । वर्तमान युग में मानसिक तनाव की समस्या प्रबल बन रही है। अनुकंपा कम हो और क्रूरता ज्यादा हो तो मानसिक तनाव क्यों नहीं होगा ? दृष्ट- जन्म वेदनीय : अदृष्ठ - जन्म वेदनीय
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वेदनीय कर्म का विपाक दो प्रकार से होता है । कुछ कर्म दृष्ट- जन्म वेदनीय होते हैं और कुछ कर्म अदृष्ट जन्म
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