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नवतत्त्व : आधुनिक संदर्भ है । वह है बंध । मनोविज्ञान के अचेतन तत्त्व की जैन दर्शन की परिभाषा में एकांश में तुलना करें तो वह है-बंध । बंध है अचेतन । जैसे अचेतन तत्त्व बाहरी उद्दीपनों से प्रगट होकर चेतना को प्रभावित करता है वैसे ही बंध भी बाहरी उद्दीपनों या काल-मर्यादा को प्राप्त कर चेतन को प्रभावित करता है। फ्रायड का अभिमत
फ्रायड ने माना- अचेतन में गंदगी भरी है, दमित वासनाएं भरी हुई हैं, बुराइयां ही बुराइयां हैं। यूंग का मानना था - अचेतन में केवल बुराइयां ही नहीं हैं, उसमें अच्छाइयों के संस्कार भी हैं। जैन दर्शन का अभिमत है - बंध में पुण्य भी है, पाप भी है । पुण्य और पाप-दोनों के परमाणु संचित हैं। समय-समय पर ये दोनों प्रकट होते रहते हैं। कभी पुण्य के स्कंध बाहर आ जाते हैं, कभी पाप के स्कंध बाहर आ जाते हैं। इस बाहर आने की अवस्था को कहा गया--विपाक । उनकी फल देने की शक्ति को कहा गया - अनुभाग । उनको काल-मर्यादा को कहा गया-स्थिति और उनके स्वभाव को कहा गया-प्रकृति। जो भी परमाणु भीतर जाते हैं, उनमें एक स्वभाव पड़ जाता है। वे परमाणु स्वभाव के अनुसार अपना-अपना काम करते हैं। वे काल-मर्यादा से बंधे हुए हैं। उन्हें एक निर्धारित काल तक भंडार में रहना होता है। जब काल मर्यादा पूर्ण होती है तब वे परिपक्व होकर बाहर आते हैं, व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। उनका फलानुभव होता है, व्यक्ति को उनका फल मिलता है । यह है अन्तर्जगत का लेखाजोखा। यूंग का दृष्टिकोण
फ्रायड ने बहिर्मुखता के आधार पर चित्त का अध्ययन
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