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स्वतंत्र भी बंधा हुआ है
जो दिखाई देता है, वह है शरीर । इस शरीर में बहुत कुछ है, पर वह आंखों से दिखाई नहीं देता, कानों से सुनाई नहीं देता, किसी इन्द्रिय की पकड़ में नहीं आता। फ्रायड ने जीवन की व्याख्या मन के दो संभागों के आधार पर की। एक संभाग है चेतन, दूसरा है अचेतन । यूंग ने इस अवधारणा को मान्य नहीं किया। यूंग ने कहा-मन बहुत छोटा तत्व है। हमारा चित्त स्थायी है, साथ में रहने वाला है। चेतन और अचेतन-ये दोनों चित्त के संभाग हैं। चेतन है प्रकाशमय और अचेतन है अन्धकारमय । किन्तु चेतन और अचेतन-दोनों का योग करने पर ही जीवन की समग्रता के साथ व्याख्या की जा सकती है। जीवन के चार आयाम
जैन दर्शन में जीवन के चार विशेष आयाम माने गए हैं --आश्रव, बंध, पुण्य और पाप। इन चारों के आधार पर जीवन की व्याख्या की जा सकती है। एक तत्त्व है आश्रव, जो बाहर से निरन्तर ग्रहण कर रहा है। एक तत्त्व है बंध, उसका काम है भण्डारण करना। जो भण्डार बन गया, वह समयसमय पर बाहर आता है, आन्तरिक चेतना को प्रभावित करता है। उसी के आधार पर चेतन का आचरण और व्यवहार चलता है। चेतन की व्याख्या करने के लिए भीतर में जो अंधकारमय भाग है, जो प्रकाश नहीं है, उसे समझना जरूरी
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