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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. ६ दिनरात्रिवृद्धिहानिनिरूपणम् म्य-संप्राप्य 'चारं चरई' चारम्-गत चरति-करोति 'तयाणं के महालए दिवसे के महालिया राई तदा-तस्मिन् काले को महायः को महान् - अतिशयेनाधिक आलयः ब्याप्यक्षेत्रलक्षण आश्रयो यस्यासौ किं महालयः कियान इत्यर्थः दिवसो भवति, तथा-किं महालय-क्रियत्प्रमाणा गत्रि:-निशा च भवतीति प्रश्न:, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहूत्ते दिवसे भनइ' तदा-तस्मिन् काले खलु उत्तमकाष्ठा प्राप्तः उत्तमां काष्ठाम्-अवस्थां प्राप्तः-आदित्यसंवत्सरसम्बन्धि पटू षष्टयधिक त्रिशतदिवसमध्ये यतो न कश्चिदपरोऽधिक इत्यर्थः, अत एवोत्कर्षक उ कृष्ट इत्यर्थः अष्टादश मुहूनों दण्डः तत्प्रमाण को दिवसो भवति, सर्वतोऽधिकोऽष्टादश मुहूर्त्तप्रमाणं दिनं भवति इत्यर्थः । तथा-'जहणिया दुवालसमुहुता राई भवई' जघन्या-सर्वतो न्यूना द्वादशमुहूर्त प्रमाणा रात्रि भवति, यत्र खलु मण्डले यावत्प्रमाणो दिवस स्तत्र मण्डले दिवसापेक्षया शेषा अहोरात्रप्रमाणा रात्रि रिति जघन्या द्वादश मुहूर्ता रात्रि रिति, सर्वस्मिन् क्षेत्रे काले वा त्रिंशप्राप्तकरके 'चारं चरइ' गति करता है 'तयाणं के महाल ए दिवसे' उस समय दिवस कितना बड़ा होता है ? और 'के महालिया राई' कितनी बडी रात्रि होती है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा! उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुसे दिवसे भवई' हे गौतम ! उस काल में उत्तम अवस्था को प्राप्त हुआ. आदित्य संवत्सर सम्बन्धी ३६३ दिवसों के बीचमें जिससे कोई और दिन बडा न होता ऐसा सबसे बडा दिन १८ मुहर्त्त का होता है तथा-'जहणिया दुवालासमुहत्ता राई भवई' सर्व से जघन्य १२ मुहर्त की रात्रि होती है जिस मण्डल में जितने प्रमाण का दिन होता है उस मंडल में दिवस की अपेक्षा शेष अहोरात्र के प्रमाण से कमप्रमाणवाली रात्रि होती है इस कारण जघन्य प्रमाणवाली कही गई है? समस्त क्षेत्र में अथवा काल में तीस मुहर्त का रात दिन का प्रमाण नियत कहा गया है। तो जब दिवस १८ मुहत्ते का होता है तब रात्रि १२ मुहर्त की होने ४शन 'चार चरइ' गति ४२ छ. 'तागं के महालए दिवसे' मते हिवस शासना डाय छ ? मने 'के महालिया राई' रात सी सभीय छ ? १५मा प्रभु - 'गोचमा ! उत्तमकद्वपत्ते उक्कोस र अद्वारसमुहुत्ते दिवसे भवई' गौतम ! ते मां ઉત્તમ અવસ્થા પ્રાપ્ત થયેલ આદિત્ય સ વસર સંબંધી ૩૬૩ દિવસની વચ્ચે જેમાં બીજે કઈ દિવસ લાંબે થતું નથી એ લાંબે દિન ૧૮ મુહૂર્તને થાય છે. તેમજ 'जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवई' सवयी धन्य १२ मुश्त नी त डाय छ.२ મંડળમાં જેટલા પ્રમાણને દિવસ થાય છે, તે મંડળમાં દિવસની અપેક્ષાએ શેષ અહેપાત્રના પ્રમાણથી અ૯પપ્રમાણુવાળી રાત હે ય છે. આથી રાત જઘન્ય પ્રમાણવાળી કહેવામાં આવી છે. સમસ્ત ક્ષેત્રમાં અથવા કાળમાં તીસ મુહૂર્તનું રાત-દિવસનું પ્રમાણ નિયત કરવામાં આવેલું છે. તે જ્યારે દિવસ ૧૮ મુહૂર્તને થાય છે ત્યારે રાત્રિ ૧૨ મુહુર્ત Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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