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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः स्. ३३ जम्बूद्धोपस्यायामादिकनिरूपणम् सम्प्रति-किं परिणामोऽसौ जम्बूद्वीप इतिज्ञातुं प्रश्नयनाह-'जंबुद्दीवे गं' इत्यादि, 'जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे' जम्बूद्वीपः खलु भदन्त ! द्वीपः सर्वद्वीपमध्यवर्ती द्वीप इत्यर्थः 'किं पुढवि परिणामे' किं पृथिवी परिणाम:-पृथिवीपिण्डमयः पृथिव्या विकाररूपः किम्, अथवा-'भाउपरिणामे' अप्परिणाम: जलपिण्डमयः जलस्य विकाररूपः किम्, एतादृशौ स्कन्धावचित्तरजः स्कन्धादिवद् अजीव परिणामौ अपि भवत इत्याशङ्कासाह-'जीव परिणामे' इति, किमयं जम्बूद्वीपः जीवपरिणामः जीवस्य परिणामो जीवमयः, घटादिवदनीवपरिणामोऽपि भवतीत्याशङ्ख्याह-'पोग्गलपरिणामे' किमयं पुद्गलपरिणामः केवलं पुद्गलपिण्डमय इत्यर्थः, तेजसस्तु एकान्तसुषमादौ अनुत्पन्नत्वेन एकान्तदुष्षमादौ विनश्वरशीलत्वेन अनागत काल में यह रहेगा क्यों कि किसी भी काल में इसका विनाश नहीं होता है अत एव यह 'धुवे' कूट की तरह ध्रुव-स्थिर है और ध्रुव होने के कारण ही यह 'णियए' नियत है-सर्वदा अवस्थायी है-कदाचित् भी यह अनियत नहीं है 'सासए' शाश्वत है 'अव्वए' अव्यय है विनाश से रहित है अतएव 'अवट्टिए' अवस्थिन है, एकरूप से विद्यमान है 'णिच्चे' द्रव्यरूप होने से इसमें उत्पादादि धर्मों का विरह है ऐसा ध्रुवादि विशेषणों वाला यह 'जंबुद्दीवे दीवे पन्नत्ते' जम्बुद्धीप नामका द्वीप कहा गया है, अब गौतमस्वामी पुनःप्रभुश्री से ऐसा पूछते हैं-'जंबूद्दीवेणं भंते ! दीवे किं पुढवी परिणामे' हे भदन्त ! यह जम्बूद्वीप नोम का जो द्वीप है वह क्या पृथिवी का परिणामरूप है-पृथिवी का पिण्डमय है-पृथिवी का विकाररूप है ? अथवा-'आउ परिणामे' जल का परिणामरूप है ? जल का पिण्डमय है जलका विकार रूप है ? 'जीवपरिणामे' या जीव का परिणामरूप है ? जीवमय है ? 'पोग्गलपरिणामे' अथवा-पुद्गल का परिणामरूप है? पुद्गल का पिण्डरूप है ? यदि जम्बूद्वीप को तैजस का परिणाम माना जाय तो પણ કાળે એનો વિનાશ થતે નથી આથી તે “ધુ કૂટની જેમ ધ્રુવ-સ્થિર છે અને ધ્રુવ पाना २ थे 'णियए' नियत छ-सा अस्थायी छ-४ायित् ५५ त भनियत नथी. सासए' शाश्वत छे. 'अन्वए' अव्यय छे. विनाशयी हित छे. माथी 'अवदिए' अवस्थित छ. ४३५थी विद्यमान छे. 'णिच्चे' द्रव्य३५ पाथी सभा 64हा धर्माना वि२७ छे मारा ध्रुवाति विशेषयुवाणा 20 'जंबुद्दीवे दीवे पन्नत्ते' दी५ नामना दी५ अपामा माया छ. वे गौतमस्वामी पुन: प्रभुने मा प्रमाणे पूछे छ-'जंबूदीवेणं भंते ! दीवे पुढवी परिणामे' महन्त ! 20 दी५ नामनी रे दी५ ४ह्यो छे ते शुश्विना परिणाम३५ छे-पृथ्विना [५९भय छ-विना वि४२३५ छ ? अथवा 'आउ परिणामे' जना परिणाम३५ छ १०४ (१९७भय - वि.२३५ छ १ ‘जीव परिणामे' मया न परिणाम३५ छ ? भय छ ? 'पोग्गलपरिणामे' या पुसना परि@ામરૂપ છે? પુદ્ગલના પિડરૂપ છે? જમ્બુદ્વીપને તૈજસનું પરિણામ માનવામાં આવે Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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