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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. ३१ चन्द्रस्याग्रमहिष्याः नामादिनिरूपणम् स वरं वर्डस विमाणे खरंसि सोहाससि' इति वक्तव्यम् (सूर्यस्य ज्योतिष्कराजस्य कति अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! चतस्रोऽग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ता स्तद्यथा सूर्यप्रभा, आत्माभा, अमिली, प्रभङ्करा, एवमवशेषं यथा चन्द्रस्य नवरं सूर्यास विमाने खर्चे सिंहासने इतिच्छाया || अथ ग्रहादीनामग्रमहिषी वक्तव्यतामाह - 'विजया' इत्यादि, 'विजया' विजया 'वैजयंति ' 'वैजयन्ती 'जयंती जयन्ती 'अपराजिया' अपराजिता 'सव्वेसिं गहाईणं एयाओ अग्गम हिसीओ' सर्वेषामपि पूर्वोक्तविजया वैजयन्तीत्यादि चतुभिर्नामभिदेव अग्रमहिष्यो वक्तव्याः - सर्वत्र एतन्नाम्न्य एव अग्रमहिष्यो भवन्तीति ज्ञातव्याः । उक्तमेवार्थं विशिष्य दर्शयति - 'छावत्तरस्स' इत्यादि, 'छावत्तरस्सवि गहसयस्स एयाओ अग्गमहिसीओ वक्तव्याओ' षट्सप्तत्यधिकस्यापि ग्रहशतस्य जम्बूद्वीपवर्त्ति चन्द्रद्रयपरिवारभूतानां ग्रहाणां द्विगुणिताया सूर्य की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं 'तं जहा' उनके नाम इस प्रकार से हैं -'सूरपभा, आयवाभा, अच्चिमाली, पभंकरा' सूर्यप्रभा १ आत्माभा, २ अचिमाली ३, और प्रभंकरा 'एवं अवसेसं जहा चंदस्त णवरं सूरवडे सर विमाणे सूरंसि सीहासणंसि' इस सम्बन्ध में बाकी का और सब कथन जैसे चंद्र प्रकरण में कहा गया है वैसा ही जानना चाहिये इस प्रकरण की अपेक्षा केवल यही अन्तर है कि यहां पर सूर्यावतंसक विमान है उसमें जो सिंहासन है उसका नाम सूर्य सिंहासन हैं ग्रहादिकों की अग्रमहिषियों का कथन इस प्रकार से - है 'विजरा, वेजयंती, जयंती, अपराजिया सव्वेसिं गहाईर्ण एयाओ अग्गमहिसीओ' कहा गया है समस्त ग्रहादिकों की विजया, वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता ' इन नामों की चार अग्रमहिषियां हैं नक्षत्र और तारका आदिकों की भी इसी नाम की चार २ अग्रसहिषियां हैं ! इसी बात को सूत्रकार आगे के सूत्रों द्वारा स्पष्ट करते हुए कहते हैं-'छावत्तरस्स वि गहसयस्स एया अग्गचत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे गोतम ! सूर्यनी यार अश्रमहिषियो नामां भावी छे. 'तं जहा ' तेभना नाम या प्रमाणे छे- 'सूरप्पभा, ओयवाभा, अच्चिमाली पभंकरा' सूर्यप्रभा ( १ ) आत्माला ( २ ) अर्थिभासी (3) अने अल . ' एवं अवसेसं जहा चंदस्स वरं सूरवडेंस विमाणे सूरंसि सीहा सणंसि' मा सम्भन्धभां माठी मधु अथन यन्द्र પ્રકરણમાં કહેવામાં આવ્યુ છે તે પ્રમાણે જ જાણવુ. આ પ્રકરણમાં તે પ્રકરણની અપેક્ષા કેત્રળ એટલેા જ તફાવત છે કે અહીં સૂર્યાવત'સક વિમાન છે તેમાં જે સિહાસન છે तेनुं नाम सूर्य सिंहासन हे ग्रहाहिनी अयमहिषियोनु अथन याप्रमाणे - 'विजया, वेजयंति, जयंति, अपराजिया, सव्वेसिं गहाईणं एयाओ अग्गमहिसीओ' हेवा भावी छे, સમસ્ત ગ્રહાર્દિકની વય બૈજયન્તિ, જયન્તી અને અપરાજિતા એ નામની ચાર પટ્ટરાણીઓ છે. આ હકીકતને સૂત્રકાર પછીના સૂત્રેા દ્વારા સ્પષ્ટ કરતાં થયાં કહે છે'छावत्तर वि गहसयस्स एया अग्गमहिसीओ वत्तव्वाओ' १७६ श्रडनी - यूढीयवत्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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