SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 511
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०२ जम्बूद्वीपाशतिस्त्रे प्रकारेण तारारूपस्य तारारूपस्य, एकस्मात् तारारूपाद् द्वितीयतासरूपस्योपयुक्ताबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तं-कथितमिति द्वादद्वारम् ॥ इति त्रिंशत्सूत्रम् ।। सू० ३०॥ त्रिंशत्सूत्रं व्याख्याय त्रयोदशं द्वारं प्रश्नयितु मेकत्रिंशत्सूत्रमाह-'चंदस्त णं भंते' इत्यादि। मूलम्-चंदस्त णं भंते ! जोइसिंदस्स जोइसरणो कइ अग्गहि सीओ पन्नत्ताको ? गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ, पन्नत्ताओ, तं जहा-चंदप्पभा दोसिणाभा अचिमाली पभंकरा, तओणं एगमेगाए देवीए चत्तारि देवीसहस्साइं परिवारो पन्नत्तो, पभूणं ताओ एगमेगा देवी अन्नं देवीसहस्सं विउवित्तए, एवामेव सयुवावरेण सोलस देवी सहस्सा से तं तुडिए । पहूगं भंते ! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाणे चंदाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए तुड़िएण सद्धि महया हयणगीयवाइय जाव दिवाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए, गोयमा ! णो इणटे सलटे से केणट्रेणं जाव विहरित्तए, गोयमा ! चंदस्स णं जोइसिंदस्त जोइसरायस्त चंदवडेसए विमाणे। चंदाए राय. हाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चेइय खंभे वइरामएसु गोलवट्ट समुग्गएसु बहूईओ जिणसकहाओ सन्निखित्ताओ चिटुंति ताओणं चंदस्स अण्णेसिं च बहूणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ जाव पज्जुपासगिजाओ से तेणटेणं गोयमा ! णो पभूत्ति। पभूग चंदे सभाए सुहम्माए चउहि सामाणिय साहस्सिहिं एवं जाव दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, केवलं परिवारऋद्धीए णो चेव णं मेहुणवत्तियं, विजया? वेजयंतीर जयंती३ अपराजिया४, सवेसिं गहाईणं एयाओ अग्गमहिस्सीओ, छावत्तरस्स वि गहसयस्स एयाओ अग्गहिसीओ, वत्तवाओ, इमाहिं गाहाहि ति इंगालए विआलए लोहियंके सणिच्छरे चेत्र । आहुणिए पाहुणिए६, कणगसणामाय पंचे व १११॥ सोमे१२ सहिए १३ आसणे य १४ कज्जोवए य १६ अयकरए १७ दुंदुभए १८ संखसमाननामे वितिष्णेव ॥२॥ एवं भाणियव्वं जाव भावके उस्स अग्गमहिसीओ ति ॥ चंदविमाणेणं भंते । देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy