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________________ मम्मीपप्रातिसूत्रे दिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चंदेहितो सूरा सव्वसिम्यगई' चन्द्रेभ्य श्चन्द्रापेक्षया सूर्याः सर्वशीघ्रगतयो भवन्ति; 'सूर्येभ्यः-सूर्यापेक्षया ग्रहा:भौमादयः शीघ्रगतयः 'गहे हितो णक्खत्ता' सि घगई' ग्रहेभ्यो ग्रहापेक्षया नक्षत्राणि-अभि जिदादीनि शीघ्रगतीनि भवन्ति, तथा-'णखत्तेहितो ताराख्वा सिग्घगई' नक्षत्रेभ्योऽभिजिदादिनक्षत्रापेक्षया तारारूपाणि शीघ्रगतीनि, मुहूर्तगतौ विचार्यमःणायाम् परेषां परेषा गतिप्रकर्षस्यागमप्रसिद्धत्वात् अत एव 'सधप्पगई चंदा' सर्वाल्पगतयश्चन्द्राः सर्वेभ्यः सूर्यादिभ्योऽल्पा-मन्दा गतिर्गमनं येषां ते तथा 'सबसिन्धगई तारारूवत्ति' सर्वेभ्यः-सर्वापेक्षया शीघ्रगतीनि तारारूपाणि इति दशमं द्वारम् ॥१०॥ ___ सम्प्रति एकादशद्वारमाह-'एएसिणं' इत्यादि, 'एए सिणं भंते !' एतेषां खलु भदन्त ! 'चंदिमसूरियगहणक्खत्ततारारूवाणं' चन्द्रसूर्यग्रहनक्षत्रतारारूपाणां मध्ये 'कयरे सव्वमहि. गौतम ! चन्द्रमाओं की अपेक्षा सूर्यों की सर्व शीघ्रगति है 'सूरेहितो गहा सिग्घगई' सूर्यों की अपेक्षा ग्रहों की शीघ्रगति हैं 'गहे हिंतो णक्खत्ता सिग्घगई' ग्रहों की अपेक्षा नक्षत्रों की शीघ्रगति है, तथा ‘णक्खत्तेहिं तो तरारूपा सिग्घ गई' अभिजितू आदि नक्षत्रों की अपेक्षा तारारूपों की शीघ्रगति है क्योंकि मुहर्तगति की विचारणा में आगे २ के ज्योतिष्कों का गति प्रकर्ष आगम प्रसिद्ध है इसलिये 'सव्वप्पगई चंदा' सर्व से अल्प गति चन्द्रमाओं की है और 'सव्वसिग्घगई तारारूवत्ति' सर्व की अपेक्षा शीघ्रगतिवाले तारारूप है। दशम द्वार समाप्त ॥ एकादश द्वार वक्तव्यता ... 'एएसि णं भंते ! चंदिमसूरियगहणक्खत्ततारारूवाणं' हे भदन्त ! इन चन्द्र, सूर्य ग्रह, नक्षत्र और तारारूपों में से कयरे सव्वमहिडिया कयरे सव्व ४ सुप्रसिद्ध छ. भान। उत्तरमा प्रभु ४३ छ-'गोयमा ! चंदेहितो सूरा सव्वसिग्घगई' है गौतम ! यन्द्रमामानी अपेक्षा सूर्यानी सर्वशति छ 'सूरेहिंतो गहा सिग्घगई' सूनी भपेक्षा अडानी शीशति छ. 'गहे हितो णक्खत्ता सिग्घगई' अडानी अपेक्षा नक्षत्रानी शीघ्रगति छ. तथा 'णक्खत्तेहितो तारारूवा सिग्धगई' समिति माह नक्षत्रानी અપેક્ષા તારારૂપની શીઘગતિ છે કારણ કે મુહુર્તગતિની વિચારણામાં આગળ આગળ ज्योतिनो गति प्र४५ मा प्रसिद्ध छ २था 'सव्यप्पगई चदा' सवयी मति यन्द्रमामानी छ भने 'सव्वसिग्घगई तारारूवत्ति' सनी अपेक्षा शातित३५ छ. દશદ્વાર સમાપ્ત એકાદશદ્વાર વક્તવ્યતા 'एएमिणं भंते ! चदिम सूरियगहणक्खत्ततारारूवाणं' 3 महन्त ! 20 यन्द्र, सूर्य, और नक्षत्र भने ॥२॥३पामांथा 'कयरे सबमहिडूढिया कयरे सव्वापडूढिया' ४१५ सव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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