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________________ जम्बूद्वीपप्रक्षप्तिसूत्रे माध्यमिकानि पञ्चदश रात्रिंदिवं नयति-परिसमापयति 'चित्ता एगं राइंदियं णेई' चित्रानक्षत्रं चैत्रमासस्य चरममेकं रात्रिंदिवं नयति-परिसमापयति चित्रानक्षत्रेण परिसमापनकारणादेव अस्य मासस्य चैत्रमिति नाम भवति, तयाणं दुवालसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणु. परियट्टई' चैत्रमासे खलु द्वादशाङ्गुलपौरुष्या-द्वादशाङ्गुलाधिकपौरुष्या छायया सूर्योsनुपर्यटते-अनुपरावर्तते । एतदेव दर्शयति-तस्सणं मासस्स' इत्यादि, 'तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे' तस्य खलु चैत्रमासस्य योऽसौ चरमो दिवस:-पर्यन्तदिनम् 'तंसि च ण दिवसंसि लेहटाई तिणि पयाई पोरिसी भवई' तस्मिश्च खलु चैत्रमासस्य चरम दिवसे रेखा स्थानि रेखापादपर्यन्तवत्तिनी सीमा तत्स्थानि त्रीणि पदानि पौरुषी भवति इति ।। द्वितीयं मासं पृच्छति-'गिम्हाणं' इत्यादि, 'गिम्हाणं भंते ! दोच्चं मासं कति णक्खत्ता ऐति' ग्रीष्माणां ग्रीष्मकालस्य भदन्त ! द्वितीयमासं कति नक्षत्राणि-कियत्संख्यकानि नक्षत्राणि नयन्ति स्वास्तंगमनेन परिसमापयन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, अहोरातों को समाप्त करता है 'चित्ता एवं राइंदियं णेई' एवं चित्रा नक्षत्र चैत्र मास के एक दिनरात को समाप्त करता है यह चित्रा नक्षत्र के द्वारा समाप्त किया जाता है इसी कारण इस मास का नाम चैत्र मास हुआ है 'तयाणं दुवालसंगुल पोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियइ' इस चैत्रमास का जो अन्तिम दिवस होता है उस दिवस में १२ अंगुल अधिक पौरुषी छाया से युक्त हुआ सूर्य परिभ्रमण करता है इसी बात को 'तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिव. संसि लेहट्ठाइं तिणि पयाई पोरिसी भवई' इससूत्र द्वारा विशदरूप से स्पष्ट किया गया है-कि इस चैत्रमास का जो अन्तिम दिवस होता है उस दिन परिपूर्ण तीन पद वाली पौरुषी होती है। ____ 'गिम्हाणं भंते ! दोच्चं मासं कह णक्खता णेति' हे भदन्त ! ग्रीष्मकाल जो द्वितीय मास वैशाख मास है उसे कितने नक्षत्र समाप्त करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! तिणि णवत्ता णे ति' हे गौतम ! ग्रीष्मकाल એક દિવસરાતને સમાપ્ત કરે છે. આ ચિત્રા નક્ષત્ર દ્વારા સમાપ્ત થતું હોવાના કારણે આ भास थैत्रमासनु नाम आपामा भायु छे. 'तयाणं दुवालसंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ' २॥ यत्रभासने रे अतिम हिक्स डाय छे ते हिवसे १२ in अधिर पौ३०३५ छायाथी युद्धत थये सूर्य परिश्रम ४२ छ. २मा ४ीतने 'तस्सणं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवस सि लेहटाई तिण्णि पयाई पोरिसी भवई' આ સૂત્ર દ્વારા વિશદ રૂપથી સ્પષ્ટ કરવામાં આવ્યું છે કે-આ ચિત્રમાસને છેલ્લે દિવસ डाय छे ते हिवसे परिपूर्ण त्रय पवाजी पौ३५डाय छे 'गिम्हाणं भंते ! दोच्चं मास कइ णक्खत्ता ऐति' मन्त! श्रीमान २ भी मास शाम छ तर खi नक्षत्र समास रे छान नाममा प्रभु ४ छ-'गोयमा ! तिणि गक्खता णेति' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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