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________________ ४२२ जम्बूजीपप्रज्ञप्तिसूत्रे उस राईदियाई णेइ, हत्थो पण्णरस राईदियाई णेइ, वित्ता एवं राईदियं णेइ, तयाणं दुवाल संगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियहइ, तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंमि लेहट्टाई तिणि पयाई पोरिसी भवइ, गिम्हा णं भंते! दोच्चं मासं कति णक्खत्ता ति, गोयमा ! तिष्णि णक्खत्ता र्णेति तं जहा - चित्ता साईं विसाहा, चित्ता चउदस राईदियाई णेइ, साई पण्णरस राईदियाई णेइ, विसाहा एगं राईदियं णेइ, तयाणं अटुंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियहह, तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाई अटुंगुलाई पोरिसी भवइ । गिम्हा णं भंते! तच्चं मासं कइ णक्खत्ता र्णेति ? गोयमा ! चत्तारि णक्खत्ता र्णेति तं जहा- रिसाहा अणुरादा जेट्ठा मूलो, विसाहा उद्दस राईदियाई णेइ, अणुराहा अट्ट राई दियाई s, जेहा सत्त राईदिय ई णेइ मूलो एक्कं राईदियं तयाणं चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरियट्टइ, तस्स णं मासस्स जे चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाई वत्तारि य अंगुलाई पोरिसी भवइ । गिम्हाणे भंते । चउत्थं मासं कइ णक्खत्ता र्णेति ! गोयमा ! तिष्णि णक्खत्ता र्णेति तं जहा-मूलो पुव्वासाढा उत्तरासादा, मूलो चउद्दस इंदियाई इ, पुव्वासाढा पण्णरस राइंदियाई णेइ, पुव्वासाढा पण्णरस राईदियाई णेइ उत्तरासाढा एगं राईदियं णेइ । तयाणं वट्टाए समउरंसठाणसंठियाए णग्गोहपरिमंडलाए सकायमणुरंगियाए छाय ए सूरिए अपरियट्टइ, तस्स णं मासस्त जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवससि लेहटाई दो पयाई पोरिसी भवइ । एएसि णं पुव्वपणियाणं पयाण इमा संगहणी तं जहा- जोगो देव य तारग्ग गोत संठाण चंदरवि जोगो | कुल पुष्णिम अवमंसा णेया छाया य बोद्धव्वा ॥ सू० २६६ ॥ छाया - वर्षाणां प्रथमं कवि नक्षत्राणि नयन्ति ? गौतम ! चत्वारि नक्षत्राणि नयन्ति तद्यथाउत्तराषाढा अभिजित् श्रवणो धनिष्ठा, उत्तराषाढा चतुर्दशाहोरात्राणि नयति, अभिजित् सप्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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