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________________ ४८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे अग्गभावकणिल्ले' मौद्गल्यायनं सांख्य यनं च तथा अग्रभाव कणिल्लम् तत्राभिनिनक्षत्रं मोद्गल्यायनं मोद्गल्यगोत्रम् श्रायननं सांख्यायनं सांख्यायनगोत्रम् धनिष्ठा नक्षत्रम् अग्रभावम् अग्रभावगोत्रम् शतभिषा नक्षत्रं कणिल्लम्-कणिल्लगोत्रम्, 'तत्तोय जाउकणं धणंजए चेव बोधवे' ततश्च जातुकर्ण धनंजय चव बोद्धव्यं पूर्वभाद्रपानक्षत्रं जातु कर्णगोत्रम्, उत्तरभाद्रपदं नक्षत्रं धनञ्जयगोत्रं ज्ञातव्यम् 'पुस्सायणे य अस्सायणे २ भग्गवेसेय अग्गिवेस्से' पुष्यायनं चाश्वायनं च भार्गवेशं चाग्जिनेश्यं च, तत्र रेवतीनक्षत्रं पुष्यारनगोत्रम्, तथा अश्विनी नक्षत्रम् आश्वायनगोत्रम् भरणीनक्षत्रं च भार्गवेशगोत्रम् कृतिकानक्षत्रम् अग्नि वेश्यनक्षत्रम् भवति । 'गोयमं भरदार लोहिच्चे चेव वासिटे' गौतमं भारद्वाज लोहित्यं चैव वासिष्ठम् तत्र रोहिणी नक्षत्रं गौतमगोत्रम् मुगशिरो नक्षत्रं भारद्वाज गोत्रम् आर्द्रा नक्षत्रं लौहित्यायनगोत्रम् पुनर्वसु नक्षत्रं वशिष्ठगोत्रं भवतीति ज्ञात यस् 'ओमज्जायण मंडब्वायणेय पिंगायणेष गोयल्ले' अवमज्जायनं मांडव्यायनं किंगापन च गोवल्टम् भी सांख्यायनादि गोत्रां को भी जानना चाहिये सूत्रकार ने जो संग्रह गाथा कही है वह उन उन नक्षत्रो के संक्षेप से गोत्र प्रदर्शन के लिये कही है वह गाथा इस प्रकार से है-'मोग्गलायण संखायणेय तह अग्गभावकणिल्ले' यह तो उपर प्रकट ही कर दिया है कि अभिजितू नक्षत्र का गोत्र मौद्ग ल्य है श्रवण नक्षत्र का गोत्र सांख्याधन है धनिष्ठानक्षत्र का गोत्र अग्र भाव है शतभिषा नक्षत्र का गोत्र कणिल्ल है 'तत्तो य जाउकाणं धणंजए य बोधवे' पूर्व भाद्रपदा नक्षत्र का गोत्र जातुकर्ण है उत्तर भाद्रपदा नक्षत्र का गोत्र धनञ्जय है 'पुस्सायणेय अस्सायणेय भग्गवेसेय अग्गिवेरसे' रेवती नक्षत्र का गोत्र पुष्यायन है अश्विनी नक्षत्र का गोत्र आश्वायन है भरणी नक्षत्र का गोत्र भार्गवंश है कृत्तिका नक्षत्र का गोत्र अग्निवेश्य है (गोयनं भरद्दाए लोहिच्चे चेव वासि?' रोहिणी नक्षत्र का गोत्र गौतम है मृगशिरा नक्षत्र का भारद्वाज गोत्र है आर्द्रा नक्षत्र का लोहित्यायन गोत्र है पुनर्वसु नक्षत्र का वसिष्ठ गोत्र है पद्धति माटे हे छ. आया २५॥ प्रमाणे छ-'मोग्गलायणसंखायणे य तह अग्गभायक जिल्ले' तो अ५२ ४८ ४री हेमा व्यु छ है ममिशित नक्षत्रनु ग.त्र मी.क्ष्य છે શ્રવણ નક્ષત્રનું નેત્ર સાંખ્યયન છે. ધનિષ્ઠા નક્ષત્રનું નેત્ર અગ્રભાવ છે, સલિ नक्षत्रनु नाम गोत्र शुस छे. 'तत्तो य जाउकण धणंजए चेव बोद्धव्वे' पूर्व भाद्रपहा नक्षत्रनु गात्र तु छ, उत्तासादयः। नक्षत्रनु गोत्र यनय छे. 'पुस्सायणे य अस्सायणे य भग्गवेसे य अग्गिवेस्से य' रेवती नक्षत्रनु गोत्र पुयायन छ. अश्विनी नक्षत्रनु ગોત્ર આશ્વાયન છે. ભરણી નક્ષત્રનું નેત્ર ભાર્ગવંશ છે કૃત્તિકાનક્ષત્રનું ગોત્ર અગ્નિવેશ્ય छ. 'गोयमं भरदाए लोहिच्चे चेव वासि?' शडियानक्षत्रनु गोत्र गौतम छे. भृगशिरा नक्षत्रनु ભારદ્વાજ ગોત્ર છે. આદ્રનક્ષત્રનું લેહિત્યાયન ગેત્ર છે પુનર્વસુનક્ષત્રનું વસિષ્ઠ ગેત્ર છે 'ओमज्जायणमंडव्वायणे य पिंगायणे य गोवल्ले' अध्यनक्षतर्नु समय मात्र छे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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