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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिस्त्र मुहूर्तप्रमाणो दिवसो भवति तदा मन्दरस्य पूर्व पश्चिमे च पञ्चदशहूर्तप्रमाणा रात्रि भवति । 'पण्णरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे साइरेग पण्णरसमुहुत्ता राई' यदा खलु पञ्चदशमुहूर्तानन्तरो दिवसो भवति तदा सा तिरेकपञ्चदशमुहर्तप्रमाणा रात्रि भवति इति । 'चोइसमुहुत्ते दिवसे' यदा खलु चतुर्दशमहूर्तप्रमाणो दिवसो भवति द्वाविंशत्युत्तरशततममण्डले सूर्ये, तदा 'सोलस मुहुत्ताराई' षोडशमुहूर्तप्रमाणा रात्रिर्भवति यदा खलु मदरस्य पर्वतस्य दक्षिणे चोत्तरे च विभागे चतुर्दशमुहूर्तप्रमाणको दिवसो भवति तदा मन्दरस्य पर्वतस्य पूर्वे: पश्चिमेच दिग्भागे पोडशमुहूर्त्तप्रमाणा रात्रिर्भवतीत्यर्थः 'चोदसमुहुत्ताणंतरेदिवसे भवइ साइरेग सोलसमुहत्ता राई भवई' यदा खलु चतुर्दशमुहानन्तरो दिवसो भवति तदा सातिरेकषोडश मुहूर्ता रात्रिर्भवति यदा खलु मन्दरस्य दक्षिणे उत्तरे च भागे चतुर्दशमुहूर्तानन्तरो दिवसो भवति तदा मन्दरस्य पूर्व पश्चिमेच भागे सातिरेक षोडशमुहूत्तप्रपाणपती रात्रिर्भवतीत्यर्थः। दिशामें १५ मुहूर्त का दिन होता है और मन्दर पर्वत की पूर्व और पश्चिम दिशामें १५ मुहूर्त की रात्रि होतो है 'पण्णरसहुत्ताणंतरे दिवसे साइरेग पण्णरसमुहत्ता राई' और जब १५ मुहूर्त से कुछ कम दिन होता है त १५ मुहूर्त से अधिक रात्रि होती है। 'चोद्दसमुहुत्ते दिवसे' जब १२२ वें मंडल में सूर्य होता है तष १४ मुहूर्त का दिवस होता है और 'सोलसमुहत्ता राई' सोलह मुहर्स की रात्रि होती है. तात्पर यह है कि जब मन्दर पर्वत की दक्षिण और उत्तर दिशा में १४ मुहर्त का दिन होता है तब मन्दर पर्वत की पूर्व और पश्चिम दिशा में १६ नं को रात्रि होनी है 'चोद्दरामुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ साइरेग सोलस मुहत्ता राई भवर' तथा जब कुछ कम सोलह मुहर्त का दिन होता है तब कुछ अधिक सोलह मुहूर्त की रात्रि होती है अर्थात् मन्दर पर्वत की दक्षिण और उत्तर दिशा में जब कुछ कम १४ मुहर्त का दिवस होता है तब मन्दर पर्वत की पूर्व और पश्चिम दिशा में कुछ अधिक सोलह मुहर्त की भने म४२५ तनी पूर्व भने पश्चिमहिशामा १५ मुतती विडोय छे. 'पण्णरस महत्ताणतरे दिवसे साइरेग पण्णरसमुहुता राई' भने पारे १५ मुड़त ४२त ४४ ४म हिवसाय छ त्यारे १५ मुडूत ४२: मधि४ विडाय छे. 'चोदस मुहुत्ते दिवसे' न्यारे १२१ मा भ'भः सूर्य उदय छे त्यारे १४ मुहूतना हसराय छ भने 'सोलस महत्ता राई, सो भुइतनी गन डाय छे. त५ मा प्रमाणे छ है न्यारे २५ तनी દક્ષિણ અને ઉત્તરદિશામાં ૧૪ મુહૂર્તને દિવસ હોય છે ત્યારે મંદિર પર્વતની પૂર્વ અને पश्चिमाशामा १६ भुडूतनी त्रि होय छे. 'चोदसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवइ साइरेग सोलसमुहुत्ता राई भवइ' तथा न्यारे ४६ ४भ सोप मुतना हि होय छे त्यारे કંઈક વધારે સાળ મુહુર્તની રાત્રિ હોય છે. અર્થાત્ મન્દર પર્વતની દક્ષિણ અને ઉત્તરદિશામાં જ્યારે કંઈક કમ ૧૪ મુહૂર્તને દિવસ હોય છે, ત્યારે અંદર પર્વતની પૂર્વ અને Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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