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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे देव पुनर्देर्शयति विशेषणान्तरेण 'मंदातवलेस्सा' मन्दतपलेश्याः तत्र मन्दाः-न तीक्ष्यणस्वभावा आतपरूपाले श्या-किरणसमुदायो येषां ते मन्दातपलेश्याः 'चित्तंतरलेस्सा' चित्रान्तरलेश्या: चित्रमन्तरं च लेश्या येषां ते चित्रान्तरलेश्याः, अर्थात् चित्रमन्तरं सूर्याणां चन्द्रान्तरितत्वात् चित्रलेश्यातु चन्द्राणां शीतरश्मित्वात् सूर्याणामुष्णकिरणवत्वात् । ते च चन्द्रादयः काभिरपभासयन्ति तत्राह-'अण्णोण्ण' इत्यादि, 'अण्णोग्ण समोगाढा हिं' छेस्साहि' अन्योन्य समवगादाभिलेश्याभिः, तत्रान्योन्यं परस्परं समवगाढाभिः-संश्लिष्टाभिः लेश्यामिः मिमितप्रकाशैः चन्द्राणां सूर्याणां च लेश्याः योजनशतसहसप्रमाण विस्ताराः चन्द्रसूर्याणां सूची. पंक्त्या व्यव स्थतानां परस्परमन्धरं पञ्चाशद् योजनसहस्राणि ततश्च चन्द्रस्य प्रभया मिश्रिताः चन्द्रप्रभाः, एवं प्रकारेण चन्द्रसूर्ययोः प्रभानां परस्परमिश्रीभावः प्रतिपादित इति ॥ एतेषां सूर्य के प्रति है-इस से ये अति उष्णतेज वाले नहीं होते हैं जैसे कि ये मनुध्यलोक में निदाघ के समय में-गर्मी के समय में हो जाते हैं 'मंदातवलेश्या' ये मन्द आतपरूप लेश्यावाले -किरणोंवाले होते हैं-तीक्षण किरणों वाले नहीं होते हैं 'चित्तंतरलेस्ता' इनका अन्तर विचित्र होता है और लेश्या भी इन की भिन्न २ ही होती है क्यों कि सूर्य चन्द्रों से अन्तरित होते हैं तथा चन्द्र शीतरश्मिवाले होते हैं और सूर्य उष्ण किरणों वाले होते हैं। 'अण्णोणं समोगाढाहिलोसहि कुडविषाणठिया सचओ समंता ते पएसे ओभासंति उज्जो ति पभासे तित्ति' परस्पर में मिलित प्रकाश वाले ये चन्द्र और सूर्य कूट पर्वताग्रस्थित शिखरों की तरह सर्वदा एकत्र अपने २ स्थान पर स्थित है-अर्थात् चलन क्रिया से रहित हैं। चन्द्र और सूर्यो का प्रकाश एक लाख योजन तक विस्तृत विस्तार वाला कहा है सूची पंक्ति की रचना के अनुसार व्यवस्थित हुए चन्द्र और सूर्यो का परस्पर में अन्तर ५० हजार योजन का है चन्द्र की प्रभा સૂર્ય-પ્રતિ છે. એથી એ અતિઉષ્ણ તેજવાળા હોતા નથી. જેમ કે એ મનુષ્યaswi नि५ *तुना समयमां-भीमा २६ नय छे. 'मंदातवलेश्या' असा भर आत५३५ से १-२ उय छे. तीक्ष्णु शिवाय डोतो नथी. चित्तंतर રા’ એમનું અંતર વિચિત્ર હોય છે. અને એમની વેશ્યા પણ ભિન્ન-ભિન્ન જ હોય છે. કેમકે સૂર્ય-ચન્દ્રોથી અંતરિત હોય છે. તથા શીતરશ્મિવાનું હોય છે અને સૂર્ય Byटिपण डाय छे. 'अण्णोण्णं समोगाढाहिं लेस्साहिं कुडाविव ठाणठिया सव्वओ सता ते परसे ओभासे ति उज्जोवेंति पभासें तित्ति' ५२२५२मा मिसित प्रशाणा से ચન્દ્ર અને સૂર્યકૂટ પર્વતાગ્રથિત શિખરોની જેમ સર્વદા એકત્ર પિત-પોતાના સ્થાન ઉપર સ્થિત છે. એટલે કે ચલન ક્રિયાથી રહિત છે. ચન્દ્ર અને સૂર્યોને પ્રકાશ એકલાખ ચિજન સુધી વિસ્તૃત-વિસ્તારવાળે કહેવામાં આવેલ છે. સૂચી પંક્તિની રચના મુજબ વ્યવસ્થિત થયેલા ચન્દ્ર અને સૂર્યોનું પરસ્પરમાં અંતર ૫૦ હજર જન જેટલું છે.
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