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________________ ૨૨૮ जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्रे सम्प्रति-उक्तमेबाथै लोकहिताय प्रकारान्तरेण दर्शयितुं द्वादशद्वारमाह-'जंबुद्दीवेणं' इत्यादि, 'जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे' जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे सर्वद्वीपमध्य जम्बूद्वीपे इत्यर्थः 'मरियाणं' सूर्ययोः 'कि तीते खेते किरिया कज' किमतीते क्षेत्रे क्रिया क्रियते, द्वयोः पर्ययोः या अवभासनादिका क्रिया सा क्रियते-भवतीत्यर्थः किम्बा-'पडुप्पण्णे खेत्ते किरिया फजई' प्रत्युत्पन्ने वर्तमाने क्षेत्रे क्रिया क्रियते भवति यद्वा 'अणागए खेते फिरिया कन्जइ' अनागते क्षेत्रे क्रिया क्रियते इति प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो तीए खेते किरिया कजह नो अतीते क्षेत्रे सूर्ययोः क्रिया क्रियते, अतीत भी प्रतीति कोटि में-देखने में आजाती है । प्रकाश ताप, और प्रभास पदों स्पृष्ट आदि पदका निवेश करके आलाप प्रकार अपने आपही उद्भावित करलेना चा. हिये क्योंकि विस्तार भय से हम उसे यहां नहीं लिख रहे हैं। ११वां द्वार समाप्त अब इसी कथित अर्थ को लोकहित के निमित्त प्रकारान्तर से प्रकट करने के लिये सूत्रकार १२ वें द्वार का कथन करते हैं ... इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे सूरियाणं कितीते खेत्ते किरिया कज्जई' हे भदन्त ! जम्बूद्वीर नामके द्वीप में इन दों सूर्यो की अवभासनादि क्रिया होती है सो क्या वह अतीत क्षेत्र में उनके द्वारा की जातो है ? या 'पडुप्पण्णे खेत्ते किरिया कज्जई' प्रत्युत्पन्न क्षेत्र में वर्तमान में उनके द्वारा वह की जाती है ? या 'आगागए खेत्ते किरिया कज्जई' अनागत क्षेत्र में वह उनके द्वारा की जाती है ? इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु गौतमस्वामी से कहते हैं'गोयमा! णो तीए खेत्ते किरिया कजई' हे गौतम! उन दोनों सूर्यो द्वारा जो अव. भासनादि क्रिया की जाती है वह अतीत क्षेत्र में नहीं की जाती है क्योंकि अतीत છે. પ્રકાશ, તાપ અને પ્રભાસ પદે સ્પષ્ટ વગેરે પદને નિર્મિત કરીને આલાપ પ્રકાર પિતાની મેળે જ ઉભવિત કરી લેવો જોઈએ. કેમકે વિસ્તારભયથી અમે અત્રે લખતા નથી. એકાદશદ્વાર સમાપ્ત હવે એજ કથિત અર્થને કહિત માટે પ્રકારાન્તરથી પ્રકટ કરવા માટે સૂત્રકાર ૧૨ મા દ્વારનું કથન કરે છે __ा १२ भाद्वारमा गौतमस्वामी प्रसुन साततनी प्रश्न ४ छ-'जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सरियाणं किं तीते खेत्ते किरिया कज्जई' महत! पूदी५ नाम दीपमा समे સની જે અવભાસનદિ કિયા થાય છે, તે શું અતીત ક્ષેત્રમાં તેમના વડે કરવામાં આવે छ. अथवा 'पडुप्पण्णे खेत्ते किरिया कजई' प्रत्युत्पन्न क्षेत्रमा वर्तमान क्षेत्रमा तमना कडे ते ४२वामां आवे छे ? अथवा 'अणागए खेत्ते किरिया कज्जई' मनायत क्षेत्रमा ते तेमना पडे ४२वामा भाव छ ? 2 प्रश्नोन वामभ प्रभु गौतमस्वामी ४४ छ-'गोयमा ! णो तीए खेत्ते किरिया कज्जई गौतमते मे सूर्या ५३२ ममासना या ४२वामा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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