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________________ जम्बूद्वीपप्रतिसूत्र इति नियमात् नो शब्दो निषेधार्थ : ततश्च हे गौतम ! तौ सूयौं अतीतं क्षेत्रं नातिक्रामतः अतीतक्रियाविषयीकृते वस्तुनि वर्तम निकक्रियाया असंभषेन तादृशक्रियाया व्याप्तेरभावात्, किन्तु 'पडुप्पणं खेत्तं गच्छंति' प्रत्युत्पन्न वर्तमानकालिक क्षेत्रं सूर्यो गच्छतोऽतिक्रामतः स्वकीयगत्या, वर्तमानक्रियायोग्ये वस्तुनि वर्तमानक्रियायाः संभवात् ‘णो अणागयं खेत्तं गच्छंति त्ति' नो अनागतं क्षेत्रं गच्छत इति, अत्रापि नो शब्दो निषेधार्थकः तथाच सूर्यो अनागतं भविष्यदगतिक्रियोपलक्षिनं क्षेत्रं स्वकीय वातैमानिक गति क्रयया न व्याप्नुतः, भविष्यत् क्रियायोग्ये वस्तुनि वर्तमानक्रियाया असंभवादिति । ____ सम्प्रति-गतिविषयी कृतं क्षेत्र कीदृग्भवेदिति प्रष्टुमाइ-'तं भंते' इत्यादि, 'तं मंते ! किं पुढे गच्छंति जाव नियमा छद्दिसिं' तत क्षेत्रं खलु भदन्त ! सूयौं स्पृष्टं-स्पर्शनक्रिया विषयीकृतं गच्छतः, आहोसिद-स्पृष्टं गच्छतो यावनिषणात् षइदिशि, अत्र यावत्पादेन 'किं अपुढे गच्छति, गोयमा ! पुढे गच्छं ते नो अपुढे गच्छंति, तं भंते ! भोगाई गच्छति जम्बूद्वीपस्थ दो सूर्य अतीत क्षेत्र पर संचरण नहिं करते हैं । 'अमानोना प्रतिषेध' के अनुसार यहां नो शब्द निषेधार्थक है । अतीत क्रिया द्वारा विषयी कृत वस्तु में वर्तमान काल तक क्रिया की असंभवता है अतः ऐसी क्रिया द्वारा व्याप्ति की असंभवता से 'पडुप्पन्न खेत्तं गच्छति' वे दो सूर्य वर्तमान कालिक क्षेत्र पर संचरण करते हैं, तथा वर्तमान क्रिया योग्य वस्तु में वर्तमान क्रिया की ही संभवता होती है अतः 'णो अणागयं खेत्तं गच्छंति ति' वे दो सूर्य-अनागतक्षेत्र पर संचरण नहीं करते हैं। __'तं भंते ! कि पुटुं गच्छंति जाव नियमा छद्दिसिं' अब गौतमस्वामी प्रभु श्री से ऐसा पूछते हैं कि गति विषयी कृत क्षेत्र कैसा होता है ? क्या हे भदन्त ! वह उन दो सूर्यो को स्पर्शन क्रिया द्वारा स्पृष्ट होता है उस पर ये मंचरण करते हैं ? या वह उनकी स्पर्शन क्रिया द्वारा अस्पृष्ट छ-'गोयमा ! नो तीयं खेत्तं गच्छंति' गौतम ! बी५२५ मे सूर्या मातीत क्षेत्र ५२ संय२५ ४२ता नथी. 'अमानोना प्रतिषेध' भुम बही 'नो' श निषेधार्थ छे. अतीत ક્રિયા વડે વિષયીકૃત વસ્તુમાં વર્તમાનકાળ સુધી ક્રિયાની અસંભવતા છે એથી આવી ક્રિયા 43 व्यासिनी असमाथी ‘पडुप्पन्नं खेत्तं गच्छंति' मे सू पत मानस क्षेत्र પર સંચરણ કરે છે તેમજ વર્તમાન કિયા યોગ્ય વસ્તુમાં વર્તમાન ક્રિયાની જ સંભવતા खराय छे. मेथी ‘णो अणागयं खेत्तं गच्छति ति' ते मे सूर्या मनात क्षेत्र ५२ सय२५ ४२॥ नथी. 'तं भंते ! किं पुटुं गच्छंति जाव नियमा छदिसिं' के गीतमस्वामी प्रसुन की રીતે પ્રશન કરે છે કે ગતિ વિષયી કૃત ક્ષેત્ર કેવું હોય છે ? હે ભદંત ! શું તે બે સૂર્યોની સ્પર્શન ક્રિયા વડે પૃષ્ટ હોય છે. તેની ઉપર તે સંચરણ કરે છે? અથવા તે તેમની પન ક્રિયા વડે અપૃષ્ટ હોય છે. તેની ઉપર તે સંચરણ કરે છે? અહીં યાવત્ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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