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________________ १०२ अम्बूद्वीपप्रतिस्त्र आख्यात:-कथित इति गौतमो बदेदिति प्रश्नः, भगवानाइ-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जे णं मंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे' योऽयं खलु मन्दरपर्वतस्य-मेरुगिरेः परि• क्षेपः-परिधिः 'तं मंदरपरिक्खे' तं मन्दरपरिक्षेपं परिधिम्, त्रयोविंशति षट्शताधिकैकत्रिंशयोजनसहस्र ३१६२३ योजनप्रमाणकम् परिधिम् 'दोहिं गुणेत्ता' द्वाभ्यां गुणयित्वाद्वि संख्यया गुणनं कृत्वा सर्वाभ्यन्तरमण्डलस्थे सूर्ये तापक्षेत्रसंवन्धिनां त्रयाणाम् अपान्तराले (मध्यभागे) रजनीक्षेत्रस्य दशभागद्वय प्रमाणत्वात् 'दसहिं छेत्ता' दशभिच्छित्वा-दशसंख्यया भागं दत्वा, एतदेव पर्यायशब्देन पुनदर्शयति-'दसहि भागे हीरमाणे' दशभिर्भागे हियमाणे 'एसणं परिक्खेवविसेसे आहिएत्ति वए जा' एषः पूर्वोक्तः परिक्षेपविशेषः-परिघिविशेष आख्यात:-कथित इति वदेदिति । सर्वाभ्यन्तरान्धकारवाहायाः परिधि दर्शयित्वा तस्या एवान्धकारसंस्थितेः सर्वबाह्यबाहायाः परिक्षेपविशेष दर्शयितुमाह-'तीसेणं' इत्यादि, 'तीसेणं सचबाहिरिया बाहा लवणसमुदंतेण' तस्या अन्धकारसंस्थितेः सर्वबाह्या बाहा लवणसमुद्रान्ते लवणसमुदसमीपे तद्दोशीत्यर्थः 'तेसट्ठी जोयणसहस्साई' त्रिषष्टि योजनमंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे) हे गौतम ! मंदर पर्वत का जो परिक्षेप-परिधिका प्रमाण ३१६२३ योजन का कहा गया है (तं मंदरपरिक्खेवं) उस परिमाण को (दोहिं गुणेसा) दो से गुणित करके क्योंकि सर्वाभ्यन्तर मंडलस्थ सूर्य के होनेपर तापक्षेत्र संबन्धी तीनों के मध्य भाग में रजनीक्षेत्र का प्रमाण होता है फिर उस गुणित राशि में (दसहिं छेत्ता)१० का भाग देकरके (दसहि भागे हीर. माणे) अर्थात् उसके दश छेद करके (एसणं परिक्खेवविसेसे पाहिएति वएज्जा) यह पूर्वोक्त ६३२४. प्रमाण परिधि की अपेक्षा अन्धकार संस्थिति का आजाता है सर्वाभ्यन्तर अन्धकार बाहा की परिधि प्रकट करके उसी अन्धकार संस्थिति कीजो सर्ववाह्य वाहा है उसके परिक्षेप विशेष को प्रकट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं-(तीसेगं सम्वबाहिरिया बाहा लवणसमुदंतेणं) उस अन्धकार संस्थिति की सर्वचाय पाहा लवणसमुद्र के अन्त में-लवणसमुद्र के पास-उसकी दिशा पव्वयस्स परिक्खे वे' हे गौतम ! म४२५ तना र परिश५ मे परिचित प्रभार 3१९२७ योन ४३वाभा मावस छे. 'तं मंदरपरिक्खे' ते परिमाणुन 'दोहिं गुणेत्ता' બે સંખ્યા વડે ગુણિત કરીને-કેમકે સર્વાત્યંતર મંડલસ્થ સૂર્ય જ્યારે થાય ત્યારે તા પક્ષેત્ર સંબંધી ત્રણેના મધ્યભાગમાં રજનીક્ષેત્રનું પ્રમાણ હોય છે–પછી તે ગુણિત રાશિમાં सहि छेत्ता' १० ॥४२ ४शत 'दसहिं भागे हीरमाणे' मेट , ४श-छ। शत 'एसणं परिक्खेवविसेसे आहिएत्ति वएज्जा' 20 पूर्वरित ६३२४ प्रमाण પરિધિની અપેક્ષાએ અંધકાર સંસ્થિતિનું આવી જાય છે. સભ્યન્તર અંધકાર બહાની પરિધિ પ્રકટ કરીને તેજ અંધકાર સંસ્થિતિની જે સર્વબાહ્ય બાહા છે, તેના પરિક્ષેપ विशेष प्रट ४२१। भाट सूत्रा२ ४ छ-'तीसेगं सव्व बाहिरिया बाहा लवणसमुदंते ते અંધકાર સંસ્થિતિની સર્વબાહ્ય બાહા લવણસમુદ્રના અંતમાં–લવણસમુદ્રની પાસે તેની Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003156
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages562
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size17 MB
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