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________________ ૭૮૨ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र 'छप्पण्णं सलिलासहस्सा भवंतीति मक्खाय' षट्पञ्चाशत् सलिला सहस्राणि आवान्तरनद्यः तासां सहस्राणि भवन्तीत्याख्यातं मया तथाऽन्यैश्च तीर्थकरैरिति । 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे' जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे 'हेमवय हेरण्णवएमु वासेसु' हैमवत हैरण्यवतयो वर्षयो मध्ये 'कइ महाणईओ पन्नत्ताओ' कति-कियत्संख्यका महानद्यः प्रज्ञप्ता:-कथिता इति प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'चत्तारि महाणईओ पन्नत्ताओ' चतस्रो महानद्यः प्रज्ञप्ता:-कथिताः, 'तं जहा'-तद्यथा-'रोहिता रोहितंसा सुवण्णकूला रुप्पकूला' रोहितानाम्नी महानदी प्रथमा १, रोहितांशा महानदी द्वितीया २, सुवर्णकूला महानदी तृतीया ३, रूप्यकूला महानदी चतुर्थी ४, 'तत्थणं एगमेगा महाणई' तत्र खलु एकैका महानदी 'अट्ठावीसाए अट्ठावीसाए सलिलासहस्से हिं' अष्टाविंशत्या अष्टाविंशत्या सलिला सहस्रः अवान्तरनदीसहनै रित्यर्थः 'समग्रा परिपूरिता युक्ता इति यावत इत्थंभूता सती 'पुरत्यिम पञ्चत्थिमेणं लवण समुदं समप्पेइ' पूर्वपश्चिमेन लवण मुद्रं समुपसर्पति प्रविशती. त्यर्थः तत्र हैमत्रतक्षेत्रे रोहिता महानदी सपरिवारा पूर्वलवणसमुद्रं प्रविशति तत्रैव क्षेत्रे रोहितांनदियां है 'जंबुद्दोषेणं भंते ! दीवे हेमवय हेरण्णवरसु वासेसु कई महाणईओ पन्नताओ' हे भदन्त ! इस जंबूद्वीप नामके बीपमें जो हैननत और हैरण्यात क्षेत्र हैं-उनमें कितनी महानदियां हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते है-'गोयमा ! चत्तारि महाणईओ पन्नत्ताओ' हे गौतम ! इनमें चार महानदियां है 'तं जहा' उनके नाम इस प्रकार से है-रोहिता, रोहितंला सुवण्णकूला' रूपकूला तत्थगं एगमेगा महाणई अट्ठावीसाए २ सलिलासहस्तेहिं' इनमें एक एक महानदीकी परिवारभूत अवान्तर नदियां २८ हजार २८ हजार हैं। 'पुरथिमपच्चत्थिमेणं लवणसमुहं समप्पेह' इनमें जो हैमवतक्षेत्र में रोहिता नामकी महानदी है वह अपनी परिवारभून २८ हजार अवान्तर नदियों के साथ पूर्व लवणसमुद्र में जाकर मिली है और रोहितांशा महानदी अपनी परिवारभूत २८ हजार नदियों भगीन ५६ ७०४२ पान्त२ नही। छे. 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे हेमवय हेरण्णवएसु वासेसु कईमहाणई ओ पत्ताओ' 3 महन्त ! २॥ भूदी५ नाम दीपमा २ है ५१त है एयवत क्षेत्र छ तभटकी भडानही। मावसी छे १ सेनाममा प्रभु छ-'गोयमा! चत्तारि महाणईओ पन्नताओ' है गीत ! समां था२ भानही सावकी छे. 'तं जहा' ते नही माना न.२१ प्रमाणे छ-'रोहिता, रोहितंसा, सुरण्णकूला' हिता, हितासा सुर त म ३५१. 'तत्थणं एगमेगा महाणई अढावीसाए २ सलिलासहस्सेहि' समां मे- महानहीनी परिवारभूत सव-२ नही। २८ २ २८ र छ. 'पुरथिमपच्चत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ' समां रे उभयतमा त नाम मनही छे ते પિતાની પરિવારભૂતા ૨૮ હજાર અવાક્તર નદી એની સાથે પૂર્વ લવણસમુદ્રમાં જઈને મળે છે અને હિંતાશા મહાનદી પિતાની પરિવારભૂતા ૨૮ હજાર નદીઓની સાથે પશ્ચિમ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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