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________________ ७७२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे षष्टानि-सप्तषष्टयधिकानि चत्वारिशतानि भवन्तीति आख्यातं मया अन्यैश्च तीर्थकरैरिति । तथाहि-पटप्रश्चाशद् ५६ वर्षधरकूटानि, षण्णवति ९६ वक्षस्कारकूटानि, षडधिकानि त्रीणिशतानि ३०६ वृत्तवैताढयकूटानि नव ९ मन्दरकूटानि सर्व संकलनया ४६७ संख्या भवन्ति । सम्प्रति-तीर्थद्वारमाह-'जंबुद्दीवेणं भंते' इत्यादि, 'जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे' जम्बू द्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे सर्व द्वीपमध्य जम्बूद्वीपे इत्यर्थः 'भरहे वासे' भरतनामके वर्ष-क्षेत्रे 'कइ तित्था पन्नत्ता' कति-कियत्संख्यकानि तीर्थानि मागधादीनि प्रज्ञप्तानि-कथितानीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तो तित्था पग्नत्ता' त्रीणि त्रिसंख्यकानि तीर्थानि प्रज्ञप्तानि-कथितानि, तान्येव नामग्राहं दर्शयति-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'मागहे, वरदामेपभासे, मागधं वरदाम प्रभासम्, तत्र मागधं तीर्थ पूर्वस्यां दिशि समुद्रस्य गङ्गासङ्गमे, वरदामतीर्थ दक्षिणस्यां दिशि, प्रभासंतीर्थ पश्चिम दिशि समुद्रस्य सिन्धु सङ्गमे । 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे' जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! पे सर्व द्वीपमध्यद्वीपे इत्यर्थः स्तिकूट ग्राह्य नहीं हुए हैं । क्यों कि ये भूमि प्रतिष्ठित होने के कारण स्वतन्त्रकूट हैं। 'एवामेव सपुत्वावरेण' इस प्रकार ये सय कुट मिलकर ४६७ होते हैं जैसे-५६ वर्ष धर कूट, ९६ वक्षस्कारकूट ३०६ वृतवैताढयकूट, और..९ मन्दर कूट इनका जोड ४६७ होता है। तीर्थद्वारवक्तव्यता . 'जंबुद्दीवेणं भंते ! भरहे वासे कइ तित्था पण्णत्ता' हे भदन्त ! इस जम्बूद्वीप नामके द्वीप में मागध आदि तीर्थ कितने कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं गोयमा ! 'तओ तित्था पण्णत्ता' हे गौतम ! तीन तीर्थ कहे गये हैं । 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'मागहे वरदामे, पभासे' मागध वरदाम और प्रभास इन में मागध तीर्थ समुद्र का पूर्व दिशा में है जहां की गंगा का संगम हुआ है घरदामतीर्थ दक्षिण दिशामें है और प्रभासतीर्थ पश्चिमदिशा में है जहां की सिन्धु नदी का संगम हुआ है 'जंबुद्दीवे णं भंते ! एरवए वासे कइ तित्था नथी, भ, सन्या भूमिप्रतित डोवाथी स्वतंत्र झूटो छे. 'एवामेव सपुव्यावरेण' ! પ્રમાણે આ બધા કૂટ મળીને ૪૬૭ થાય છે. જેમકે ૫૬ વર્ષધર કૂટ, ૯૬ વક્ષસ્કાર કૂટે, ૩૦૬ વૃત્તવૈતાઢય કૂટો અને ૯ મંદર કૂટો આમ એ સર્વની જોડ ૪૬૭ થાય છે. તીર્થદ્વાર વક્તવ્યતા . 'जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे भरहेवासे कइ तित्था पण्णत्ता' लत ! 241 पूरी५ नाम: दीयमा भाग वगेरे तार्था सा उपामा मा छ १ मा प्रभु ४९ छे. 'गोयमा ! तओ तित्था पण्णत्ता' 3 गीतम! ता. ४ामा मासा छ. 'तं जहा भो 'मागहे . वरदामे, पभासे भाग, १२४ाम अने प्रभास समा भाग ती समुद्रनी पूर्व दिशामा આવેલ છે. જ્યાં ગંગાને સંગમ થયેલ છે. વરદાન તીર્થ દક્ષિણદિશામાં આવેલ છે અને Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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