SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 695
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जम्बूद्वीपप्राप्तिसूने एवं विजयाणुसारेण जाव अप्पेगइयादेवा आसिअ संमजिओवलित्तसित्तसुइसम्मट्टरत्यंतरावणीहि करेंति जाव गंधवटिभूति अप्पेगइया हिरण्णवासं वासंति एवं सुवण्णरयगइर आभरणपत्तपुप्फफलबीअमल्लगंधवषण जाव चुण्णवासं वासंति, अप्पेगइया हिरण्णविहिं भाइंति एवं जाव चुण्णविहिं भाइंति अप्पेवाइया चउन्विहं वज्ज वाएंति तं जहा-ततं १ विततं २ घणं ३ झुसिरं ४ अप्पेगइया चउव्विहं गेयं गायंति तं जहा-उक्खित्तं १ पायत्तं २ मंदागईथं ३ रोईआवसाणं ४ अप्पेगइया चउव्विहं ण णच्चंति तं जहा-अंचिअं १ दुअं २ आरभडं ३ भसोलं ४ अप्पेगइया चउठिवहं अभिणयं अभिणेति तं जहा-दिदें. तिअं १ पडिसुएइयं २ सामण्णोकणिवाइथं ३ लोगमज्झावसाणियं, अणेगबत्तीसइविहं दिव्यं णट्टविहिं उबदसेंति अप्पेगइया उप्पयं निवयं निवयउप्पयं संकुचिअपसारिअं जाव भंतसंभतणामं दिव्वं पट्टविहिं उवदंसंतीति, अप्पेगइया तंडति अप्पेगइया लालेति, अप्पेगइया पीणेति, एवं बुक्काति, अप्फोडेंति, वग्गंति सीहणायं णदंति अप्पेगइया सव्वाई करेंति अप्पेगइणा हयहेलिअं एवं हथि मुलुगुलाइ रहघणघणाइअं अप्पेगइया तिण्णिवि, अप्पेगइया उच्छोलंति अप्पेगइया पच्छोलंति, अप्पेगइया तिवई छिंदंति पायददस्यं करेंति,भूमिचवेडे दलयंति, अप्पेगइया महया सद्देणं राति एवं संजोगा विभासिया अप्पेगइया हक्कारेंति एवं पुकारेंति वकारेंति ओवयंति परिक्यंति जलंति तवंति पय. वंति गज्जति विजआयंति वासिंति अप्पेगइया देवुकलिअं करेंति एवं देवकहकहगं करेंति, अप्पेगइया दुहु दुहुगं करेंति अप्पेगइया विकिय भूयाइं रूवाइं विउवित्ता पणचंति एवमाइ विभासेज्जा जहा विजयस्स जाव सब्बओ समंता आधावेंति परिधावेंति ॥ सू० १०॥ छाया-ततः खलु सोऽच्युतो देवेन्द्रः दशभिः सामानिकसहस्त्रैः त्रयस्त्रिंशता त्रायस्त्रिंशकैः चतुर्भिलोकपालैः तिसृभिः पर्षद्भिः सप्तभिरनीकैः सप्तभिरनीकाधिपतिभिः चस्वारिंशता आत्मरक्षकदेवसहरीः साई संपरिषतः ते स्वाभाविकैः वैक्रियैश्च पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy