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________________ ६१२ अम्बुद्वीप प्रशतिसूत्रे तथाभूतः पुनः कीदृशः 'भासुरखोंदी' भास्वरबोन्दि: भास्वरशरीरः दीप्यमान देहयुक्तः इत्यर्थः दीप्तिमान् 'पलंववणमाले' प्रलम्बवनमालः लंबायमानमालायुक्तः कीदृशः 'महिद्धीए' महर्द्धिकः महत्ती ऋद्धः विमानादि सम्पत् यस्य स तथाभूतः तथा 'महज्जुईए' महाद्युतिकः महती द्युतिः आमरणं प्रमा यस्य स तथाभूतः तथा 'महाबले' महाबलः अतिशय बलशाली तथा 'महाजसे' महायशाः विशालकीर्तिः तथा 'महाणुभागे' महानुभागः महानुभावः तथा ' महासोक्खे' महासौख्यः 'सोहम्भे कापे' सौधर्मे कल्पे 'सोह म्म डिस विमाणे' सौधर्मावतंस के विमाने 'सभाए सुहम्माए' सभायां सुधर्मागां 'सकसि - Hari' शक्रे सिंहासने वर्तमानः 'से णं तत्थ' स खलु सौधर्माधिपतिः तत्र ' वत्ती - सार विमाणावास सय साहस्सी णं' द्वात्रिंशतः विमानावासशतसहस्राणां द्वात्रिशल्लक्षसंख्यक विमानावासानाम् आधिपत्यादिकं कारयन् पालयन विहरति इत्यग्रेण संबन्धः पुनः कीदृशः 'चउरासीए सामाणि साहस्तीणं' चतुरशीतेः सामानिक सहस्राणां चतुरशीतिसहस्रसंख्यक सामानिकानाम्, आधिपत्यादिकम् तथा 'तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं' त्रयत्रिशतस्त्राय त्रिशकानाम् देवविशेषाणाम् आधिपायादिकम् तथा 'चउन्हं लोगपालाणं' चतुर्णी लोकपालानाम् 'भासुरबों दी' इसका शरीर सदा दीपनबना हुआ रहता है 'पलंबवणमाले' इसकी वनमाला बडी लम्बी रहती है 'महिद्धिए' इसकी विमानादि सम्पत् बहुत वडी चढी होती है 'महज्जुइए महाबले, महाजसे, महाणुभागे, महासोक्खे' इसके आभरणादिकों की शुति बहुत ऊंची होती है यह अतिशय बलशाली होता है प्रभाव भी इसका विशिष्ट होता है विशिष्ट सुखों का यह भोक्ता होता है ऐसे इन विशेषणों वाला वह शक 'सोहम्मे कप्पे' सौधर्म कल्प में 'सोहम्मवर्डिसए विमाणे' सौधर्मावतंसक विमान में 'सभाए सुहम्माए' सुधर्मानाम की सभा में 'सक्कंसि सीहासणंसि' शक्र नामके सिंहासन पर विराजमान था 'से तत्थ बत्तीसार विमाणावास सय साहस्सीणं, चउरासीए सामाणिय साहस्सी णंतायतीसातायत्तीसगाणं चउन्हें लोगपालाणं अहं अग्गमहिसोणं सपरिवाराणं तिन्हं शरीर सद्दा हीस रहे छे. 'पलंबवणमाले' थेनी वनभासा महु सांगी रहे छे. 'महिद्धिए' मेनी विभानाहि सभ्यत् धाणी वधारे होय छे. 'महज्जुइए महाबले, महाजसे, महाणुभागे, महा सोक्खे' सेना आभरणाद्विभनी धुति गहु अशी सोय छे से अतिशय मशासी હાય છે. એની કીતિ વિશાળ હૈાય છે, એના પ્રમાત્ર વિશિષ્ટ હાય છે. એ વિશિષ્ટ सुन सोडता होय हे सेवा से विशेषणत्राणे ते शत्रु 'सोहम्मे कप्पे सौधर्भ उत्पभां 'सोहम्मवडिस विमाणे' सौ धर्भर्भावित स विमानमा 'सभाए सुहम्माए' सुधर्मा नाम सभाभां 'सक्कँसि सीहासणंसि' 13 नाभ सिंहासन उपर सभासीन हुने 'से णं तत्थ बत्तीसार विमाणावाससयसाहरसीणं, चउरासीए सामाणिय साहस्सीणं तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं चउन्हं लोगप.लाणं अहं अग्गनहिसणं सपरिवारागं तिन्हं परिमाणं सत्तण्हं अणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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