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________________ जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्रे शाकिन्यादि दुष्टदेवताभ्यो दृग्दोषादिभ्यश्च रक्षाकरी पोट्टलिका बध्नन्ति 'बंधेत्ता' बद्ध्वा 'णाणामणिरयणभत्तिचित्त दुविहे पाहाणवट्टगे गिडंति' नाना मणिरत्नभक्तिचित्रौ-नानामणिरत्नानां विविधचन्द्रकान्तहीरकादीनां भक्तीरचना तया विचित्रौ द्विविधौ पाषाणवृत्तको पाषाणगोलको गृह्णन्ति 'गहाय' गृहीत्वा 'भगवो तित्थयरस कण्णमूलंमि टिट्टियाविति' भगवतस्तीर्थङ्करस्य कर्णमूले तौ पापाणगोलको संयोज्य 'टिट्टियाति' परस्परं ताडनेन टिट्टीतिशब्दोत्पादनपूर्वकं वादयन्तीत्यर्थः 'टिट्टियावेंति' अनुकरणशब्दोऽयम् अनेन हि बाललीलाक्शादन्यत्र व्यासक्तं भगवन्तं वक्ष्यमाणाशीर्व वनश्रवणे पटुं कुर्वन्तीतिभावः, 'भवउ भगवं पव्वयाउए २' भवतु भगवान् पर्वतायुः भवतु भगवान् पर्वतायुः इत्याशीर्वचनं ददाति इति । 'तए णं ताओ रुयगमज्झवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारी महत्तरियाओ भगवं तित्थयरं राखकी पोलियां बनाई जिन और जिन जननी की शाकिनी आदि दुष्ट देवियों से एवं दृष्टिदोष से रक्षा करने वालो ऐसी पोहलिका तैयार की और उसे उनके गलेमें बांध दिया 'बंधेत्ता णाणामणिरयणभत्तिचित्ते दुविहे पाहाणवट्टगे. गिण्हंति' बांधने के बाद फिर उन्हों ने अनेक मणि और रत्नों से जिनमें रचना हो रही है और इसी से जो विचित्र प्रकार के हैं ऐसे दो गोलपाषाण को-वट. ईयों को शालिग्राम की जैसी छोटी-छोटी दो वटइयों को उठाया-'गहाय भगवओ तित्थयरस्स कण्णमूलंमि टिट्टियाति' और उठाकर उन्हें भगवान् तीर्थकर के कर्णमूल पर ले जाकर बजायो-कि जिस से उनके वचन से टी टी ऐसा शब्द निकला 'टिट्टियावेंति' यह अनुकरण शब्द है । इससे यह प्रकट किया गया है कि बाललीला के वश से यदि भगवान् का चित्त अन्यत्र आसक्त हो तो वह एक जगह आजावे ताकि वक्ष्यमाण इस आशीर्वाद के वचनों को वे सावधान से सुन सके 'भवउ भगवं पव्वयाउए' आप भगवान पर्वत के बराबर आधुवाले हों જિન અને જિન જનની ની શાકિની વગેરે દુષ્ટ દેવીઓથી તેમજ દષ્ટિ દોષથી રક્ષા કરનારી એવી તેમણે પટ્ટલિકા તૈયાર કરી અને પછી તે પિટ્ટલિકા તે તેમના ગળામાં બાંધી દીધી. बंधेत्ता णाणामणिरयणभत्तिचित्ते दुविहे पाहाणवट्टगे गिण्हंति' मध्य मा तेभो भने મણિઓ અને રત્નની જેમાં રચના થઈ રહી છે અને એનાથી જ જે વિચિત્ર પ્રકારના छ, सेवा पाषाणु-शसियाम २१ मारनामे पाषाण।-४०यI. 'गहाय भगः पओ तित्थयरस्स कण्णमूलंमि टिट्टियावें ति' सन 19ी तेभर भगवान् तीथ ४२॥ ४५મલ ઉપર લઈ જઈને વગાડયા.. કે જેથી તેમના વજનથી જ ‘ટી-ટી' એ શબ્દ નીકળે टिदियाति' २॥ मनु४२४ात्म४ श६ छ. अनाथी मा पात ५४८ ४२॥मा पाकी छ । બાળલીલાના કારણથી જે ભગવાનનું ચિત્ત અન્ય સ્થળે આસક્ત હોય તે તે એક સ્થાને આવી જાય. જેથી વક્ષ્યમાણુ આ આશીર્વાદના વચનને તેઓશ્રી સાવધાન થઈને સાંભળી ई. 'भव भगवं पव्वयाउए' मा५ भगवान् पर्वत ५२।१२ आयुष्यवाणा थापा. 'तराएणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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