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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे ततः तासामाज्ञप्त्यनन्तरं खलु ते आभियोगा:- अज्ञाकारिणो देवाः ताभिः रुचकमध्यवास्तव्याभिः चतसृभिः दिक्कुमारीमहत्तरिकामिरेवम् उत्तप्रकारेण उत्ता आइप्ताः सातः हातुष्टा यावद् विनयेन वचनं प्रतीच्छन्ति स्वीकुर्वन्ति अत्र याक्त पदात् हृष्टतुष्टचित्तानन्दिताः सुमनसः परमसौमनस्थिताः हर्षवशविसर्पहृदया इति ग्राह्यम् 'पडिच्छित्ता' प्रतीष्य स्वीकृत्य, 'खिप्पामेव चुल्लहिमवंताओ वासहरपरक्याओ सरसाइं गोसीसचंदणय हाई साहरंति' क्षिप्रमेव शीघ्रातिशीघ्रमेव क्षुद्र हिमवतो वर्षधरपर्वतात् सरसानि-रससहितानि गोशीर्षचन्दनकाष्ठानि संहरस्ति समानयन्ति 'तएणं ताओ मज्झिमरुर गास्थयाओ चत्वारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सरग करेंति' रतः र लु तदनन्तरं विल ताः मध्यस्चर पर्वतवास्तव्याः चतस्रो दिवकुमारी महत्तरिकाः शरशरप्रतिकृति तीक्ष्णर रूमान्युत्पादकं काष्ठ विशेष वुर्वन्ति, 'करित्ता' वृत्या 'अरणिं घडेति' अरणि घटयान्त-ते नैव शरवेण सह अरणि वयणं पडिच्छंति' इस प्रकार उन रुचक मध्य वासिनी चार महत्तरिक दिक्कु. मारियों द्वारा आज्ञप्त हुए वे आभियोगिक देव हृष्ट तुष्ट यावत् हुए और बडी विनय से उन्हों ने उनके वचनों को स्वीकार कर लिया यहां यावत्पद से 'हृष्ट तुष्ट चित्तानन्दिताः, सुमनसः परम सौमनस्थिताः हर्षवशविसर्पद हृदयाः' इस पाठका ग्रहण हुआ है 'पडिच्छित्ता खिप्पामेव चुल्लहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ सरसाई गोसीसचंदणकाई साहरंति' आज्ञा के वचनों को स्वीकार करके वे आभियोगिक देव क्षुद्रहिमवत्पर्वत पर गये और वहां से गौशीर्ष सरस चन्दन की लकडियां ले आये 'तएणं ताओ मज्झिमरुयग वत्थवो चत्तारि दिसाकुमारी महत्तरियाओ सरगें करें ति' इसके बाद उन चार मध्यरुचक वासिनी महत्तरिक दिवकुमारियों ने अग्नि को उत्पन्न करने वाला शरक नामका काष्ठ विशेष तैयार किया 'करित्ता अरणि घडेंति उसे तैयार करके उसके साथ अरणिकाष्ठ को संयोजित किया 'अरणिं घडित्ता सरएणं वुत्ता समाणा हट्ठ तुट्ठा जाव विणएणं वयणं पडिच्छंति' मा प्रमाणे ते २५४ uilion ચાર મહત્તરિક ફિકુમારિકાઓ વડે આજ્ઞપ્ત થયેલા તે આભિગિક દે હેટ-તુષ્ટ થઈને યાવત્ બહુ જ વિનય સાથે તેમણે તેમની આજ્ઞા ન સ્વીકાર કરી લીધું. અહીં યવત ५४थी 'ह्रप्ट तुष्टचित्तानन्दिताः सुमनसः परमसौमनस्थिताः हर्षवशविसर्पद हृदयाः' मा पाना संग्रह थय। छे. 'पडिच्छित्ता खिप्पामेव चुल्लहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ सरसाइं गोसीनचंदणकट्ठाई साहरंति' माज्ञान, पयनानी स्वी२ 37ने पछी त सामियाज દેવે ક્ષુદ્ર હિમવત્ પર્વની ઉપર ગયા અને ત્યાંથી ગોશીષ સરસ ચંદનના લાકડા લઈ साव्या. तएणं ताओ मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारी महत्तरियाओ सरगं करेति' ત્યારબાદ તે ચાર મધ્ય રુચક વાસિની મહત્તરિક ફિક્કુમારીઓએ અગ્નિને ઉત્પન્ન કરનાર श२४ नाम 13 विशेष तयार यु. 'करित्ता अरणिं घडेति' तेन तयार ४शन तेनी साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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