SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 527
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र दिशि स्थितं लवणसमुद्रं 'गच्छई' गच्छति तथा रूप्यकूलाऽपि बोध्या, अथावशिष्टं स्वस्वक्षेत्रवति नदीवद्वर्णयितुं प्रदर्शयति-'अवसेसं तं चेवत्ति' अवशेषम्-अवशिष्टं गिरिगमनमुखमूलविस्तारनदी प्रभृति तदेव स्वस्वक्षेत्रवर्ति नदो प्रकरणोतमेव बोध्यम् तत्र नरकान्तानद्या हरिकान्ता नदी प्रकरणोक्तं शेष रूप्यकू लानधास्तु रोहिता नदी प्रकरणोक्तं बोध्यम्, यत्तु नरकान्तानद्या रोहितानदीवद्वर्णननिर्देशनं रूप्रकूलानधास्तु हरिकान्तानदीवत्, तदेकदिनिः सरणमेकदिग्गमन माश्रित्य नतु विष्कम्भादिकमिति बोध्यम् । अथात्रकूटानि वर्णयितुमुपक्रमते-'रुप्पिमि णं भंते !' इत्यादि प्रश्नसूत्र स्पष्टम्, उत्तरसूत्रे 'गोयमा' गौतम ! 'अट्ठ' अष्ट लवण समुद्र में मिली है 'रुप्पकूला उत्तरे गं यश्वा, जहा हरिकंना पच्चत्थिमेणं गच्छइ' इसी रुक्मीवर्ती महापुंडरीक हूद से उत्तर तोरण द्वार से रुप्यकूला नामकी महानदी भी निकली है और यह हरिकान्ता नदी की तरह पश्चिम दिग्वर्ती लवण समुद्र में जाकर मिली है हरिकान्ता नामकी महानदी हरिदर्ष क्षेत्र में बहती है 'अवसेसं तं चेवत्ति' बाकी का और सब गिरिगमन मुखमूल विस्तार आदि का कथन अपने २ क्षेत्रवर्तिनदी के प्रकरण में जैसा कहा गया है'-वैसा ही है। नरकान्ता नदी का शेष कथन हरिकान्ता नदी के प्रकरण के जैसा है रुप्यकूला नदी का शेष रोहिता नदी के प्रकरण के जैसा है। नरकान्तों नदी का वर्णन जो रोहिता नदी के वर्णन जैसा कहा गया है, वह तथा रूप्य कूला नदी का हरिकान्ता नदी के जैसा कहा गया है वह एक दिशा से निकलने की अपेक्षा तथा एकही नामकी दिशा में जाने की अपेक्षा लेकर कहा गया है विष्कम्भादिक की अपेक्षा लेकर नहीं कहा गया है। ___ 'रूप्पिमि णं भंते वासहरपव्वए कई कूडा पण्णत्ता' हे भदन्त ! रुक्मी नाम के इस वर्षधर पर्वत पर कितने कूट कहे गये हैं ? 'गोयमा ! अट्ठकूडा पण्णत्ता' આ ફમીવતી મહા પુંડરીક હદથી ઉત્તર તરણ દ્વારથી-૩યકૂલા નામે મહા નદી પણ નીકળી છે. અને આ હરિકાન્તા નદીની જેમ પશ્ચિમ દિગતી લ@ સમુદ્રમાં જઈને મળે छ. ति नामे महानही हरिष क्षेत्रमा व छे. 'अवसेसं तं चेवेति' शेष मधुर ગમન મુખ મૂલ વિસ્તાર વગેરેનું કથન પોત–પિતાના ક્ષેત્રવતી નદીના પ્રકરણમાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવ્યું છે તે પ્રમાણે જ છે. નરકાન્તા નદી વિશેનું શેષ કવન હરિકાન્તા નદીના પ્રકરણ જેવું જ છે. રુખ્ય કૂલા નદીનું શેષ કથન રેહિતા નદીના પ્રકરણ જેવું જ છે. નરકાન્તા નદીનું વર્ણન જે રેહિતા નદીના વર્ણન જેવું કહેવામાં આવેલું છે, તેમજ કૂલા નદીનું વર્ણન હરિકાન્તા ની જેવું કહેવામાં આવ્યું છે તે એક દિશાથી નીકળવાની અપેક્ષાએ તેમજ એકજ નામની દિશાાં વહેવાની અપેક્ષાએ કહેવામાં આવેલ છે. વિધ્વંભાદિકની અપેક્ષાઓ કહેવામાં આવ્યું નથી. ___ 'रुपिमि ण भते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णता' 3 R ! २५भी नामना । घर पर्वत 6.५२ सा छूटा मारा छ? 'गोयमा ! अटू कूड पण्णत्ता' गौतम! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy