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________________ ફેર जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे टीका- 'कहि णं भंते !' इत्यादि - छायागम्यम्, नवरम् 'उत्तरदाहिणायए' उत्तरदक्षिणा यतः - उत्तरदक्षिणयो दिशो रायतः दीर्घः - ' पाईणपडीणवित्यण्णे' प्राचीनप्रतीचीन विस्तीर्णः - पूर्वपश्चिमयोः दिशोर्विस्तीर्णः विस्तारयुक्तः 'सोलस जोयणसहस्साई' पोडशयोजन सहस्राणि - पोडशसहस्रयोजनानि 'पंच य' पञ्च च 'बाणउए' द्विनवतानि द्विनवत्यधिकानि 'जोयणसए' योजनशतानि 'दुण्णि य' द्वौ च 'एगूणवीसइभाए' एकोनविंशतिभागौ 'जोयणस्स' योजनस्य ‘आयामेणं' आयामेन दैर्येण प्रज्ञप्त इति पूर्वेणान्वयः, एवमायामोsस्य विजयवत् परन्तु 'पंचजोयणसयाई' पञ्च योजनशतानि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण - विस्तारेति विशेषः नतु विष्कम्भे पञ्च योजनशतानीति कथम् ?, इति चेदुच्यते - जम्बूद्वीपपरिवासे' हे भयन्त ! जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में महाविदेहक्षेत्र में 'चित्रकूडे णामं वक्खारपञ्चए पण्णत्ते' चित्रकूट नामका वक्षस्कार पर्वत कहां पर कहा गया है उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! सीआए महाणईए उत्तरेण णीलवंतस्स वासहरपव्ययस्स दाहिणेणं कच्छविजयस्स पुरस्थिमेणं सुकच्छविजयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वाले चित्तकूडे णामं वक्खारकवर पण्णत्ते' हे गौतम ! सीतामहानदी की उत्तर दिशा में नीलवन्त वर्षधर पर्वत की दक्षिणदिशा में कच्छविजय की पूर्वदिशा में, और सुकच्छविजय की पश्चिमदिशा में जंबूद्वीप नाम के द्वीप के भीतर वर्तमान महाविदेहक्षेत्र में चित्रकूटनाम का वक्षस्कार पर्वत कहा गया है 'उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणचिच्छिणे' यह पर्वत उत्तर से दक्षिणतक दीर्घ है तथा पूर्व पश्चिम दिशा में विस्तीर्ण है 'सोलसजोयणसहस्साई पंचय बाणउए जोयणसए दुण्णिय एगूणवी सहभाए जोयणस्स आयामेणं पंच जोयणसाईं विक्खंभेणं' इस का आयाम १६५९२६ योजन का है और ५०० सौ योजन का इस का विष्कम्भ है 'नीलवंतवास हरपञ्चयंतेणं चत्तारि जोयणसयाई विदेहे वासें डे लঃ ंत! मुद्वीप नामक द्वीपमा महाविद्वेषु क्षेत्रमा 'चित्तकूडे णामं वक्खारपore पण्णत्ते' चित्रट नाम वक्षस्र पर्वत या स्थणे आवे छे? सेना उत्तरभा प्रभु छे - 'गोयमा ! सीआए महाणईए उत्तरेणं णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं कच्छ विजयस्स पुरत्थिमेणं सुकच्छविजयरस पच्चत्थिमेणं एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चित्तकूडे णामं वक्खारपव्त्रए पण्णत्ते' हे गौतम! सीता महानहीनी उत्तर दिशामां नीस બન્ત વધર પર્યંતની દક્ષિણ દિશામાં કચ્છ વિજયની પૂર્વ દિશામાં અને સુકચ્છ વિજયની પશ્ચિમ દિશામાં જમૃદ્વીપ નામક દ્વીપની અંદર વર્તમાન મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં ચિત્રકૂટ નામક વક્ષરકાર पर्वत यावेस छे, 'उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिणे' मा पर्वत उत्तरथी दक्षिण सुधी हीघ्र छे तेन पूर्व-पश्चिम दिशामां विस्ती छे. 'सोलस जोयणसहस्साई पंचय बाणउए जोयणसए दुण्णिय एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं पंच जोयणसयाई बिक्खंभेणं' थे। आयाम १६८२ योजन भेटलो छ भने ५०० योजन भेटो सेना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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