________________
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र 'पुक्खरिणीओ' पुष्करिण्यः-चर्तुलवापीनाम जलाशयविशेषाः ‘पण्णत्ताओ' प्रज्ञप्ताः, ता नामतो निर्दिशति-तं जहा' तद्यथा-'पउमा' पद्मा १ 'पउमप्पभा' पद्मप्रभा २ 'कुमुदा' कुमुदा३ 'कुमदप्पभा' कुमुदप्रभा ४, एताः पूर्वादि दिक्रमेण स्वविदिग्गतप्रासादं परिवेष्टय व्यवस्थिताः, अनयैव रीत्याऽग्निकोणादि विदिक्त्रये प्रत्येकं चतस्रश्चतस्रः पुष्करिण्यो वक्तव्याः, तासां मानमाह-'ताओ णं' ताः खलु पुष्करिण्यः 'कोसं आयामेणं' क्रोशम् आयामेन-दर्पण, 'अद्धकोसं' अर्द्धक्रोशम्-क्रोशस्याई 'विवखंभेणं' विष्कम्भेण-विस्तारेण 'पंच धणुसयाई' पश्च धनुःशतानि पञ्चशतीधनूषि 'उध्वेहेणं' उद्वेधेन-भूप्रवेशेन प्रज्ञप्ताः । तासां 'वण्णओ' वर्णकः वर्णनपरपदसमूहोऽत्र बोध्यः स च प्रकरणान्तराद ग्राह्यः, 'तासि णं' तासां चतसृणां वापीनां खलु 'मज्झे' मध्ये-मध्यभागे 'पासायवडेंसगा' प्रासादावतंसकाः-प्रासादेषु उत्तमाः प्रासादाः प्रज्ञप्ताः, अत्र बहुवचनमुक्तवक्ष्यमाणवापीनां प्रासादापेक्षया बोध्यम् तेन प्रतिहित्ता' प्रथम वनषण्ड के पचास योजन प्रवेश करने पर 'एत्थ णं' यहां पर 'चत्तारि' चार 'पुक्खरिणीओ' वावडियां 'पण्णत्ताओ' कही गई है-उनके नामादि कहते हैं-'तं जहा-'पउमा' पद्मा१ 'पउमप्पभा' पद्मप्रभा२, 'कुमुदा'३ 'कुमुदप्पभा' कुनुप्रभा४ ये पूर्वादि दिशा के क्रमसे अपने से विदिशामें आये हुए प्रासादको चारों ओर से घिरकर स्थित रहते हैं। इसी प्रकार से अग्निकोणादि तीन विदिशाभे प्रत्येक को चार चार पुष्करणियां कहनी चाहिए । उनका मान कहते हैं-'ताओ' वे पुष्करणियां 'कोसं आयामेणं' एक कोस की लंबाई वाली कही है 'अद्धकोसं विखंभेगं' आधा कोसका उसका विष्कंभ-विस्तार कहा है। 'पंचधणुसयाई उव्येहेणं' पाँचसो धनुष का उनका उद्वेध-गहराई हैं । 'वण्णओ' इनका समग्र वर्णन अन्य प्रकरण में कहे अनुसार समझ लेवें । 'तासिगं' वे चारों वावडिके 'मज्झे मध्य भागमे 'पासायपडेंसगा' प्रासादावतंसक-श्रेष्ठ महल कहे है। यहां बहुवचन वक्ष्यमाणवापी के प्रासादों की अपेक्षा से जानना पमा पयास योगन प्रवेश ४२वाथी 'एत्थण' महीयां 'चत्तारि' यार 'पुक्खरिणीओ' पाव। 'पण्णत्ताओ' ४ामा मावेस छे. तेन नामा6ि २॥ प्रमाणे छे 'तं जहाँ भी 'पउमा' ५ १ 'पउमप्पभा' ५ममा २ 'कुमुदा' मुह। 3 'कुमुदप्पभा' भुना ४ से પૂર્વાદિ દિશાના કમથી પિતાનાથી વિદિશામાં આવેલ પ્રાસાદને ચારે તરફથી ઘેરીને રહે છે. એ જ પ્રમાણે અગ્નિ કેણાદિ ત્રણ વિદિશામાં પ્રત્યેકને ચાર ચાર પુષ્કરિણિયે કહેવી नये. तनु भा५ मतावे छे.-'ताओ गं' से पुरियो 'कोसं आयामेणं' ४ ॥ रेली aiमी ४ छ 'अद्धकोसं विक्खंभेणं' अर्धा ॥ २ तेन नि विस्तार उस छे. 'पंच धणुसयाई उव्वेहेणं' पांयसो धनुष २ तेन। उद्वेध-
S xsी छे. 'वण्णओ' तेनु स पूर्ण वर्णन मन्य प्ररशुभां पडेसा या प्रमाणे सभ यु'. 'तासिणं' मे प्यारे पावनी 'मझे' भव्य सामने 'पासायवडेंसगा' प्रासात उत्तम भडेस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org