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प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षरकारः सृ. २३ सुदर्शनाजम्बूवर्णनम् च्छन्दकं-देवोपवेशनार्थमासनम् प्रज्ञप्तम्, तच्च 'पंचधणुसयाई पश्च धनुःशतानि-पञ्चशतधपि 'आयामविक्खंभेणं' आयामविष्कम्भेणं 'साइरेगाई' सातिरेकाणि-साधिकानि 'पंच धणुसयाई उद्धं उच्चत्तेणं' पञ्चधनु:-शतानि ऊध्वमुच्चत्वेन । अत्र 'जिणपडिमा वण्णओ' जिन प्रतिमावर्णको बोध्यः, स च प्राग्वत् ‘णेयव्वोत्ति' नेतव्यः-ग्राह्यः, इति । 'तत्थ णं तत्र-चतसृषु शालासु खलु 'जे से पुरथिमिल्ले' या सा पौरस्त्या-पूर्व दिग्गता 'साले' शालाऽस्ति 'एत्थःणं' अत्र-अत्रान्तरे खलु एक 'भवणे' भवनं-गृहं 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तम् तच्च मानतः 'कोसं आयामेणं' क्रोशमायामेन प्रज्ञप्तम्, 'एवमेव' एवमेव-भवनवदेव ‘णवरमित्थ' नवरं-केवलम् अत्र-भवने 'सयगिज्ज' शयनीयं शय्या, वर्णनीयम् 'सेसेसु' शेषासु-पूर्व दिगवस्थितशालातिरिक्तामु दाक्षिणात्यादि शालासु मूले पुस्त्वं प्राकृतत्वाब्दोध्यम् प्रत्येकमेकैकसद्भावेन त्रयः 'पासा. यवडेंसया' प्रासादातंसका:-प्रासादवराः 'सीहासणा सपरिवारा' सिंहासनानि-सपरिवागणि आसन कहा है वह आसन 'पंच धणुसयाई उद्धं उच्चत्तणं' पांचसो धनुष का ऊंचा है। यहां पर 'जिणपडिमावण्गओ' जिनप्रतिमा व्यन्तरादिक का वर्णन कर लेवें। वह वर्णन पहले कहे अनुसार 'णेयम्वोत्ति' समझलेवें। ___ 'तत्थ णं'चार शाखा में 'जे से पुरथिमिल्ले साले' जो पूर्व दिशा की ओर गई हुई शाखा है 'एत्थ णं' वहां पर एक 'भवणे' भवन 'पण्णत्तं' कहा है। उसका मान 'कोसं आछामेणं' एक कोस का उसका आयाम कहा है 'एव मेव' भवन के जैसा ही उसका वर्णन समझलेवें । 'णवरं मित्थ' विशेष केवल इस भवन में 'सयणिज्ज' शय्या का वर्णन करलेवें' 'सेसेसु' पूर्वदिशा में गई हुई शाखा से अतिरिक्त दक्षिण दिशादि अन्य दिशा की ओर गई हुई शाखाओं में मूल में जो पुल्लिग से निर्देश किया है वह प्राकृत होने से हुवा है ऐसा समझले। प्रत्येक दिशामें एक एक के क्रम से तीनों दिशा की तीन शाखा होती है 'पासाय वडे सया' प्रासादावतंसक अर्थात् उत्तम महल 'सीहासणा सपरिवारा' भद्रासनादि पायसो धनुष २८९ यु. महीया 'जिणपडिमा वण्णओ' यन्त न प्रति भानु वर्णन ४री यु. से वर्ष न पडता ४ प्रमाणे 'णेयव्वोत्ति' समय से 'तत्थणं' थे यार शायामा 'जे से पुरथिमिल्ले साले' रे पूर्व दिशा त२३ गयेशाम छे. 'एत्थणं' त्यो ४ 'भवणे' भवन 'पण्णतं' डेस छे. तेनुमान-कोसं आयामेण' मे
। तना मायाम ४डस छ 'एवमेव' भवनना ४थन प्रमाण तनु वन सभा'. 'णवरमित्थ' विशेष व मालवनमा 'सयणिज्जं' शव्यानुन ४श से. 'सेसेस' पूर्व दिशामा गये शिवायनी दक्षिण वगेरे दिशामा गये शामायामा મૂલમાં જે પુલિંગથી નિર્દેશ કરેલ છે તે પ્રાકૃત હેવાથી થયેલ છે. તેમ સમજવું. દરેક
शाम से मना भथी ऋणे हिशानी र शामाया थाय छे. 'पासायवडेंसया' प्रासात अर्थात् उत्तम भी 'सीहासणा सपरिवारा' भद्रासना परिवार सहित
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