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प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू. २१ यमका राजधात्योर्वर्णनम्
२४३ वक्तव्या तस्याश्च ‘वण्ण भो' वर्णकः-वर्णनपरपदसमूहश्च वक्तव्यः, किम्पर्यन्तः ? इत्याह-'जाव धूवकडुच्छुगा' यावद् धूपकटुच्छुका-अष्टसहस्रसौवर्णकलशादितत्प्रमाणधूपकटुच्छुकापर्यन्तोवर्णको राजप्रश्नीयसूत्रस्य सप्ताशीतितमसूत्रादवसेयः। ___ अथ सुधर्मासभोक्तमेव सभाचतुष्टयेऽतिदिशनाह-'एवं अवसेसाण वि सभाणं' इत्यादि 'एवं' एवम्-सुधर्मासभावत् 'अवसेसाणवि' अवशेषाणां-सुधर्मासभाऽतिरिक्तानाम् उपपातादि समानाम् वर्णनं प्राकथितानुसारेणबोध्यम् किम्पर्यन्तम् ? इत्याह-'जाव उववायसभाए' यावत् उपपातसभायाम्-उत्पित्सु देवोत्पत्युपलक्षितसभायां 'सयणिज्ज' शयनीयं गृहकं चाभिव्याप्य वर्णनीयम् तथा 'हर ओय' ह्रदश्च नन्दापुष्करिणी प्रमाणो वक्तव्यः, सचोत्पन्नदेवस्य शुचित्व-जलक्रीडाद्यर्थः, 'अभिसेयसभाए' ततोऽभिषेकसभायाम्-अभिनवोत्पन्नदेवाभिषेक तेणं' दो योजन के ऊंचे हैं। वे आसन 'सव्वरयणामया' सर्वात्मना रत्नमय कहे है 'जिणपडिमा' यहां जिन प्रतिमा कही है 'वण्णओ' इसका वर्णन कहलेना वह कहांतक कहे इसके लिए कहते है 'जाव धूवकडुच्छुया' यावत् धूप कडुच्छक पर्यन्त कहे अर्थातू आठ हजार सुवर्ण कलशादि उनके प्रमाण जितनी धूपदानी कही है यह कथन पर्यन्त वर्णन समझलेवें । यह वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र के ८७ सतासीवे सूत्र में कहे अनुसार समझलेवे। ____ अब सुधर्मसभा में जो चार सभा कही है उसका वर्णन किया जाता है'एवं' सुधर्मसभा के कथनानुसार 'अवसेसाणं वि' सुधर्मसभासे अतिरिक्त उपपातादि सभाका वर्णन भी समझलेवें वह वर्णन 'जाव उववायसभाए' यावत् उपपात सभा देवोत्पत्युपलक्षित सभामें 'सयणिज्ज' शयनीय गृह पर्यन्त यह वर्णन कह लेना तथा 'हरओय' नन्दा पुष्करिणी प्रमाण हृदका वर्णन कहे वह वहां उत्पन्न देव के जल क्रीडार्थ है 'अभिसेगसभाए' तदनन्तर अभिषेक सभा में उद्ध उच्चत्तेणं' में यौनस यो छ. ये मास 'सव्वरयणामया' सर्वात्मना रत्न. भय ४ा छ. 'जिणपडिमा' 8 9 प्रतिमा ४३ छ.. 'वष्णओ' तेनु वर्णन ४॥ देते पणुन यां सुधानु ४२ ते भाटे सूत्रा२ ४ छे. 'जाव धूवकडुच्छया' यावत् ધૂપ કચ્છક પર્યન્ત તે વર્ણન કહેવું. અર્થાત્ આઠ હજાર સુવર્ણ કલશાદિ તેના પ્રમાણ જેટલી ધૂપદાની કહેલ છે. આ કથન પર્યન્ત વર્ણન સમજી લેવું. આ વર્ણન રાજકશ્રીય સૂત્રના ૮૭ સત્યાશીમાં સૂત્રમાં કહ્યા પ્રમાણે સમજી લેવુ.
હવે સુધર્મસભામાં જે ચાર સભા કહેલ છે. તેનું વર્ણન કરવામાં આવે છે.
‘एवं' सुधम समाना थन प्रमाणे 'अवसेसाण वि' सुधर्म समाथी अन्य 6५पाता समानुपए न ५सभ यु. में वन 'जाव उबवायसभाए' यावत् पातसमा हेवोत्पत्युपतक्षित समाभा 'सयणिज्ज' शयनीय ५यन्त २पाणुन ४डी यु तथा 'हरओय' नह। पु०४२७ प्रमाणु हनु पर्युन ४ ते ६ त्या उत्पन्न थयेस वानी
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