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________________ २४० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे न तु प्रमाणविहीनत्वेन, ततश्चेदं पर्यवसितम् , द्वि योजनत्रमाण मणिपीठिकोपरिस्थितत्वेन पूर्व महान्तो महेन्द्रध्वजास्तदपेक्षया महेन्द्रध्वजाविमौ क्षुद्राविति, एतदाह 'मणि पेढिया विहूणा महिंदग्झ पप्पमाणा' मणिपीठिका विहीनौ महेन्द्रध्वजप्रमाणौ इति, 'तेसिं' तयोः क्षुद्रमहेन्द्र ध्वजयोः एकैक राजधानीवर्तिन्योः, 'अवरेणं' अपरेण-अपरस्यां-पश्चिमायां दिशि 'चोप्फाला' चोप्पालौ तन्नामको 'पहरणकोसा' प्रहरणकोशौ-प्रहरणानि--आयुधानि तेषां कोशौभाण्डागारे, प्रज्ञप्ती, 'तत्थ णं' तत्र-तयोः प्रहरणकोशयोः खलु 'बहवे' बहूनि 'फलिहरयणपामुकला' परिघरत्नप्रमुखाणि-परिघरत्नादीनि 'जाव' यावत्-यावत्पदेन-प्रहरणरत्नानि सन्निक्षिप्तानि, इति ग्राह्यम् तानि 'चिटुंति' तिष्ठन्ति-सन्ति । 'मुहम्माणं उप्पि' इत्यादितयोर्द्वयोः 'सुहम्माणं' सुधर्मयोः सभयोः 'उप्पि' उपरि-ऊर्श्वभागे 'अमंगलगा अष्टाष्टमङ्गलकानि-स्वस्तिक १ श्रीवत्स२ नन्दिकावर्त ३ बर्द्धमानक४. भद्रासन५ कलश६ मत्स्य७ दर्पण८ 'भेदादष्टमङ्गलानि प्रज्ञप्तानि, इत्यारभ्य बहवः सहस्त्रपतकाः सर्वरत्नमयाः इत्यादि तद्वर्णनमिह बोध्यम् । तच्च राजप्रश्नीयसूत्रस्य चतुर्दशसूत्रात् संग्राह्यम् । सुधर्म सभातः परं महान है, उस अपेक्षा से ये दोनों क्षद्र कहना चाहिए। वहीं सूत्रकार कहते हैं 'मणिपेदिपा विहणा महिंदज्झयप्पमाणा' मणिपीठिका रहित एवं महेन्द्र वज के प्रमाण से युक्त है 'तेसिं' उन राजधानी के क्षुद्रमहेन्द्र वज 'अवरेणं' पश्चिमदिशा में 'चोप्फाला' चोप्फाल नामके 'पहरण कोसा' आयुध के कोष-भंडार कहा है । 'तत्य णं' उस प्रहरण कोष में 'बहवे फलिहश्यणपामुक्खा ' परिध आदि 'जाव' यावतू प्रहरण रत्न आदि 'चिट्ठति' रक्खे हुए हैं ! 'मुहम्माणं उपि उन सुधर्मसभा के ऊपर 'अट्ठ मंगलगा' आठ आठ मंगल द्रव्य जो इस प्रकार है-स्वस्तिक १, श्रीवत्स २, नंदिकावर्त ३, वर्धमानक ४, भद्रासन ५, कलश ६, मत्स्य ७, दर्पण ८, रक्खे हैं तथाच अनेक सहस्र पत्र हाथ में धारण किए, सर्व रत्नमय इत्यादि उसका सब वर्णन यहां पर समझलेवें। वह वर्णन राजप्रश्नीय सूत्र के १४ चौदहवे सूत्र से ज्ञात करले। छ, को पेक्षा २॥ मन्नन क्षुद्र वा नये गे सूत्र४।२४९ छ.-.णि पेढियाविणा महिंदझयापमाणा' भलिपी विनाना अने भन्न ! प्रथी युद्धत छ. 'तेसि' ये ४ ४ ४धानी क्षुद्र महेन्द्रका 'अवरेणं' पश्चिम हिमा 'चोरफाला' या नामना पहरणकोसा' मायुध - १२ ४९८ छ. 'तत्थण' से ५. ए पमा 'बहवे फलिहरचणपामोक्खा' परिघ २न विगेरे 'जाव' यावत् घड २४ विगेरे 'चिटुंति' राणे छ. 'सुहम्माणं उत्रि' ये सुधर्मसमानी ५२ 'अदृढ मंगलगा' मा मा8 भी द्रव्य छ જે આ પ્રમાણે છે.–સ્વસ્તિક ૧ શ્રીવત્સ ૨ નંદિકાવ ૩ વર્ધમાનક ૪ ભદ્રાસન ૫ કલશ ૬ મત્સ્ય ૭ દર્પણ ૮ રાખેલ છે. તથા અનેક સહસ્ત્ર પત્ર હાથમાં ધારણ કરેલ, સર્વ રત્નમય વિગેરે તેનું તમામ વર્ણન રાજકીય સૂત્રને ૧૪માં સત્રમાંથી સમજી લેવું, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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